कृषि -मिट्टी से होने वाले उत्सर्जन के कारण वैश्विक तापमान में 15 फीसदी की वृद्धि

parmodkumar

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मानव लगभग पूरी तरह से बड़ी मात्रा में खाद्य उत्पादन के लिए मिट्टी पर निर्भर है और इस कारण यह ग्रीनहाउस गैसों के बड़े पैमाने पर हो रहे उत्सर्जन का कारण भी है। यह बात वैज्ञानिकों ने हाल में किए गए एक व्यापक शोध में पाई है।

पहली बार हुए इस तरह के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि मिट्टी से संबंधित उत्सर्जन से जलवायु के वैश्विक तापमान में लगभग 15 प्रतिशत का योगदान होता है। यह उत्सर्जन मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2), नाइट्रस ऑक्साइड (एनटू2) और मीथेन (सीएच14) के रूप में बड़े पैमाने पर कृषि पद्धतियों, भूमि-उपयोग परिवर्तनों और खाद्य की बढ़ती वैश्विक मांग से प्रेरित हैं।

ध्यान रहे कि मिट्टी को कार्बन का भण्डार माना जाता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में इसके योगदान ने एक एक ऐसी समस्या पैदा कर दी है कि कैसे मिट्टी के माध्यम से खाद्य उत्पादन को बढ़ाना जारी रखा जाए और साथ ही उत्सर्जन को भी कम किया जाए।

मृदा को वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन में एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में चिन्हित किया गया है। यह शोध ऑस्ट्रेलिया (क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के कृषि और खाद्य स्थिरता स्कूल) स्कॉटलैंड (यूनाइटेड किंगडम के एबरडीन विश्वविद्यालय के जैविक और पर्यावरण विज्ञान संस्थान) और चीन (नानजिंग कृषि विश्वविद्यालय) के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।

यह शोध ग्रीनहाउस गैसों के लिए उपलब्ध मौजूदा आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है और 6 दिसंबर 2024 को जर्नल सॉइल पत्रिका में प्रकाशित हुआ।

मृदा ग्लोबल वार्मिंग में किस तरह योगदान देती है। इसका विस्तृत विवरण देते हुए शोध में पाया गया कि सीओटू जो मिट्टी से उत्पन्न होने वाली गर्मी का 74 प्रतिशत हिस्सा है। यह मिट्टी से उत्सर्जित होने वाली सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है। इसके बाद एनटॅूओ (17 प्रतिशत) और सीएच4 (9 प्रतिशत) का स्थान आता है।

इन सभी कारकों के कारण हुए उत्सर्जनों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयास में अब कई नई चुनौती आ रही हैं। इसमें सबसे प्रमुख है ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5-2 डिग्री सेल्सियस ऊपर सीमित करना शामिल है।

यह तब और भी बड़ी समस्या हो जाती है, जब संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने अनुमान लगाया कि 2050 तक वैश्विक आबादी का पेट भरने के लिए खाद्य उत्पादन के लिए फसल और पशुधन उत्पादन की मांग को पूरा करने के लिए 165-600 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि की आवश्यकता होगी।

भूमि उपयोग परिवर्तन के बाद मिट्टी के कार्बनिक यौगिक के नुकसान के कारण मिट्टी से निकलने वाले सीओ2 ने वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैस सांद्रता पर सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव डाला है। यह अच्छी तरह से मिश्रित ग्रीनहाउस गैसों के कारण होने वाली कुल वृद्धि में 11 प्रतिशत का योगदान देता है।

भूमि उपयोग परिवर्तन के कारण मिट्टी से निकलने वाले इस सीओ2 का अधिकांश हिस्सा 1800 और 1900 के बीच के समय पर अपनी चरम पर था, जिसमें मिट्टी के कार्बनिक यौगिक के नुकसान से सीओ2 का वर्तमान उत्सर्जन “ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे नए देशों” में चल रहे भूमि उपयोग परिवर्तन से प्रभावित है।

यह भी निर्धारित करना आवश्यक है कि मिट्टी के मानवजनित उपयोग ने मिट्टी से ग्रीनहाउस गैसों के वायुमंडलीय उत्सर्जन को कैसे बढ़ाया है। शोध में यह भी कहा गया है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि मिट्टी से होने वाले उत्सर्जन में शुद्ध मानवजनित वृद्धि, जीवाश्म ईंधन के जलने जैसे अन्य स्रोतों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में भी योगदान देती है।

शोधकर्ताओं ने जैव ईंधन उत्पादन सहित भूमि उपयोग में और अधिक परिवर्तन को रोकने और एसओसी के नुकसान से होने वाले सीओटू उत्सर्जन को सीमित करने की तत्काल आवश्यकता पर भी विशेष रूप से जोर दिया।

नाइट्रोजन उर्वरक दक्षता बढ़ाने के लिए एक ऐसी रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है, जिसमें नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने और चावल के खेतों से मीथेन को कम करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि पर्माफ्रॉस्ट (भूविज्ञान में स्थाई तुषार या पर्माफ्रॉस्ट ऐसी धरती को बोलते हैं जिसमें मिट्टी लगातार कम से कम दो सालों तक पानी के जमने के तामपाम से कम तापमान पर रही हो) के व्यापक रूप से पिघलने से बचा जा सके।