दिल्ली की रेड लाइट एरिया की एक दर्दनाक हकीकत,कैसे एक औरत बनी मजबूरी का शिकार

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दिल्ली की रेड लाइट एरिया की एक दर्दनाक हकीकत

कैसे एक औरत बनी मजबूरी का शिकार दिल्ली का जीबी रोड, जो बाहर से एक आम बाजार नजर आता है, लेकिन इसकी ऊपरी मंजिलों पर एक अंधेरी दुनिया बसती है। यह कहानी एक ऐसी औरत की है जो मजबूरी में इस दुनिया का हिस्सा बनी। एक रात में 70 मर्दों के साथ वक्त बिताना उसकी नियति बन गई, लेकिन यह उसका फैसला नहीं था। यह उसकी पीड़ा और बेबसी की एक दास्तान है।

कैसे पहुंची इस दलदल में गांव में गरीबी और तंगहाली के बीच पली-बढ़ी इस लड़की का सपना था कि वह अपने परिवार की मदद करे। लेकिन किस्मत ने कुछ और ही तय कर रखा था। एक दूर के रिश्तेदार ने नौकरी का झांसा देकर उसे दिल्ली लाने का वादा किया। वह खुश थी कि अब वह घर की आर्थिक स्थिति को सुधार सकेगी। लेकिन उसकी खुशियां जल्द ही तबाह हो गईं जब उसे जीबी रोड पर बेच दिया गया। महज 16 साल की उम्र में उसे इस दलदल में धकेल दिया गया।

एक रात का दर्दनाक सफर वो रात उसकी जिंदगी की सबसे भयानक रात थी। आमतौर पर 5-10 लोग आते थे, लेकिन उस रात हालात कुछ और थे। 70 मर्दों के साथ बिना रुके, बिना थके, लगातार समय बिताना पड़ा। हर चेहरा बेरहम और ठंडा था। उस छोटे से कमरे में, जहां हवा भी ठीक से नहीं आती थी, वह घुटती रही। सुबह होते-होते वह पूरी तरह टूट चुकी थी। लेकिन यहाँ किसी को टूटने का हक नहीं होता। अगली रात फिर वही सिलसिला दोहराया जाता है।

जीबी रोड की अनकही सच्चाई जीबी रोड केवल एक नाम नहीं, बल्कि एक ऐसी जगह है जहां इंसानियत दम तोड़ चुकी है। दिन में यहाँ दुकानों की चहल-पहल रहती है, लेकिन रात के अंधेरे में यह रंग-बिरंगे चेहरों से भर जाती है। बाहर की दुनिया इसे मशहूर कहती है, लेकिन यहाँ रहने वालों के लिए यह मशहूरी एक अभिशाप है। हर औरत की अपनी कहानी है—किसी को बेचा गया, कोई भूख से मजबूर हुई, तो किसी के सपनों को धोखे ने कुचल दिया। यहाँ हर चीज की कीमत लगती है—चाहे वह हंसी हो या आंसू।

सपनों का मर जाना कभी इस लड़की ने भी अपने लिए एक नई जिंदगी का सपना देखा था। सोचा था कि वह एक छोटा सा घर बनाएगी और अपने परिवार को वापस लाएगी। लेकिन धीरे-धीरे उसके सारे सपने धुंधले पड़ गए। यहाँ हर दिन नई लड़ाई है—बीमारी से, भूख से, और सबसे ज्यादा समाज की बेरहम नजरों से। लोग इसे गंदा समझते हैं, लेकिन कोई यह नहीं पूछता कि यह यहाँ तक कैसे पहुंची। यहाँ की हर औरत अपने बच्चों को इस दुनिया से दूर रखना चाहती है, लेकिन मजबूरी उन्हें हर बार हरा देती है।

क्या कभी बदलेगी यह जिंदगी? हर रोज़ यह सवाल उठता है—क्या कभी यह जिंदगी बदलेगी? सरकारें आती हैं, वादे करती हैं, लेकिन इन गलियों में कुछ नहीं बदलता। कभी-कभी मदद के लिए हाथ बढ़ते हैं, लेकिन वे भी अधूरी कोशिशों में सिमट जाते हैं। यह लड़की चाहती है कि उसकी कहानी केवल एक कहानी बनकर न रह जाए। शायद इसे पढ़कर कोई उसकी तकलीफ को समझे, कोई उसकी आवाज बने। वह चाहती है कि यह रातें खत्म हों और वह भी खुली हवा में सांस ले सके। क्या यह मुमकिन है? शायद हां, शायद नहीं।