साल 1988 में AI की पढ़ाई कर चुके प्रोफेसर ने कहा- ChatGPT इस्‍तेमाल नहीं करने वाले स्टुपिड

parmodkumar

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आजकल कई छात्र एआई टूल का इस्तेमाल करते हैं और कई इस सोच में ही पड़े हैं कि क्या उन्हें ऐसा करना चाहिए। अगर आप ChatGPT इस्‍तेमाल नहीं कर रहे हैं, तो आप स्टुपिड हैं। ऐसा हम नहीं बल्कि जानेमाने फिलोसोफर Bas Haring कह रहे हैं। हेर‍िंंग ने 1988 में AI की पढ़ाई की थी, जब लोग इसके बारे में ज्‍यादा नहीं जानते थे। बास हेरिंग ने एक अनोखा प्रयोग किया, जिससे कई लोग नाराज भी हैं। उन्‍होंने एक छात्रा के ग्रेजुएशन सुपरवाइजर का काम AI को सौंप दिया। कुछ लोगों ने इसे अनैतिक और गैर-जिम्मेदाराना बताया है। छात्रा ने अपने रिसर्च मैनेजमेंट की प्रोग्रेस पर उनके साथ नहीं बल्कि चैटजीपीटी के साथ चर्चा की। आइए, पूरा मामला जानते हैं।

प्रोफेसर बोले- 25 साल पुराना सवाल लौटा

erasmusmagazine की लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, हैरिंग अपने प्रयोग के नतीजों को लेकर काफी उत्साहित हैं। उनका मानना है कि AI, शिक्षा में मददगार हो सकता है। बास हेरिंग के अनुसार, 25 साल पहले इंटरनेट भी नया था। तब भी लोग यही सवाल पूछ रहे थे कि इसका इस्तेमाल कैसे करें। आज AI के साथ भी वही सवाल है। तब मैं ऐसे सवालों पर क्लासेस लेता था कि हम इंटरनेट के साथ क्या कर सकते हैं? इंटरनेट हमारी सोच को कैसे बदलता है? तब हर कोई इसी में व्यस्त था और अब हम फिर से एआई को लेकर यह सोच रहे हैं। एआई के इस्‍तेमाल इसके भविष्‍य पर एक्‍सपर्ट कर रहे हैं आगाह, आप क्‍यों हैं पीछे?

थीसिस की क्वालिटी हुई बेहतर

बता दें कि बास हेरिंग ने 1988 में नीदरलैंड में AI की पढ़ाई की। तब AI का क्षेत्र बहुत नया था। अब हेरिंग का कहना है कि ChatGPT के आने के बाद थीसिस की क्वालिटी में सुधार हुआ है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि लगभग सभी छात्र AI का यूज करते हैं। शिक्षा प्रणाली को अभी तक यह पता नहीं चला है कि इसे कैसे संभालना है। वे कहते हैं कि शिक्षा प्रणाली को AI के उपयोग के बारे में नियम बनाने चाहिए।

उन्होंने कहा कि आजकल छात्र AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे बेवकूफ नहीं हैं। ChatGPT हर समय उपलब्ध है। अगर कोई इसका इस्तेमाल नहीं करता तो वह लगभग बेवकूफ (स्टुपिड) ही कहलाएगा। इसलिए यह सोचने की जरूरत है कि हम छात्रों को क्या सिखाना चाहते हैं। एक प्रोफेसर छात्रों को अपनी थीसिस के लिए फिल्में देखने, साहित्य पढ़ने और संग्रहालयों में जाने के लिए प्रोत्साहित करता है। ChatGPT भी सुझाव और विचार दे सकता है, जो मददगार हो सकता है। ChatGPT से थोड़ी देर बात करने भर से ही यह आपको कई तरह के सुझाव और विचार भी दे सकता है। मुझे नहीं लगता कि यह इतना बुरा है।
प्रोफेसर का कहना है कि छात्रों को यह समझना चाहिए कि वे क्या सीख रहे हैं। वे AI का उपयोग कर रहे हैं, इसलिए उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन करना जरूरी है।
उन्होंने सुझाव दिया कि AI के साथ काम जल्दी हो सकता है। साथ ही, आपको ज्यादा अलग-अलग सुझाव मिलते हैं। अगर छात्र इसका सही इस्तेमाल करें तो एआई प्रेरक हो सकता है। एक आलोचनात्मक पर्यवेक्षक की तरह जो बिना कुछ बताए ही विचार प्रस्तुत करता है। प्रोफेसर की बातों से समझ आ रहा है कि वो यह बताना चाहते हैं कि चैटजीपीटी का यूज सिर्फ फोटो बनाना के लिए नहीं करना चाहिए। इसका यूज छात्रों को रिसर्च करने, थीसिस लिखने में मदद करने और अलग तरह से सोचने के लिए भी करना चाहिए। यह न सिर्फ कम समय में उनका काम करेगा, बल्कि उन्हें सही सुझाव और नई सोच भी देगा।