पंजाब में नवंबर महीने में किए गए सी-वोटर के पोल सर्वे के मुताबिक, पंजाब विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को क्रमशः 39 और 34 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान है. अगर ऐसा हुआ तो विधानसभा चुनाव में AAP सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आ सकती है. वोट शेयर में बढ़त के बावजूद, AAP को 117 सीटों वाले विधानसभा में बहुमत नहीं मिल सकता है. कारण है उसके मतदाता का क्षेत्रीय बिखराव. हालांकि, आप को बहुमत मिलता है या नहीं, यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल का राज्य में कैसा प्रदर्शन रहता है.
इसके बावजूद, यह कहा जा सकता है कि AAP के पास 2022 में दिल्ली के बाहर सरकार बनाने का एक सुनहरा मौका है. निस्संदेह, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की छवि की वजह से AAP के प्रदर्शन में ये उछाल देखा जा सकता है. शहरी संवेदनाओं को प्रभावित करती उनकी अपील, किसानों के साथ सद्भाव की नीति और नौकरशाही विरोधी रुख को मतदाताओं के एक वर्ग का स्पष्ट समर्थन मिल रहा है जो बीजेपी का विरोध तो करती है लेकिन कांग्रेस को वोट देने के लिए तैयार नहीं है. साथ ही वे बारी-बारी से सत्ता हासिल करने वाली अकाली और कांग्रेस सरकारों की सियासत से मुक्त वैकल्पिक राजनीति की भी तलाश कर रहे हैं.
मालवा क्षेत्र में ‘आप’ को बढ़त मिल सकती है
जहां तक जाट सिख राजनीति की बात है तो ये सर्वेक्षण एक उभरती हुई शून्यता का ही संकेत देते हैं. 1997-2021 के दौर में पंजाब ने बादल-कैप्टन का एकाधिकार देखा. मौजूदा समय में जाट नेतृत्व की कमान संभालने के लिए किसी भी नेता के पास पर्याप्त समर्थन नहीं दिख रहा है. सुखबीर बादल को कुछ वर्ग पसंद करते हैं, जबकि कुछ लोगों की पसंद भगवंत मान हैं. नवजोत सिंह सिद्धू की नाटकीय छवि ने उन्हें राज्य की राजनीति में ज्यादा आकर्षण हासिल करने में मदद नहीं की. बावजूद इसके कि मीडिया ने उनकी छवि को काफी बढ़ा चढ़ा कर पेश किया है.
सिंघू सीमा पर हालिया विरोध प्रदर्शनों के बावजूद ग्रामीण किसानों के पूरी तरह से अकाली दल या कांग्रेस पर भरोसा करने की संभावना नहीं है. इन दोनों पार्टियों के पास जाट किसानों का समर्थन है जो ग्रामीण राजनीति पर हावी रहते हैं. वर्तमान समय में आम आदमी पार्टी पर न तो कोई भ्रष्टाचार के दाग हैं और न ही किसानों के साथ उनके संबंध खराब हैं. इसलिए, मालवा क्षेत्र में AAP काफी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है. इस क्षेत्र में विधानसभा की 69 सीट हैं. मालवा के करीबन 53 सीटों में 41 पर AAP के जीतने की संभावना है.
पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा बनने के भी आसार हैं
मौजूदा समय में कांग्रेस ने राज्य में पहला दलित सीएम बनाकर दलित मतदाताओं पर अपनी पकड़ मजबूत की है. निस्संदेह कांग्रेस मायावती की रणनीति का फायदा उठा रही है. पंजाब में दलित आबादी दोआबा और माझा इलाकों में ज्यादा है और इन इलाकों से विधानसभा की कुल 48 सीटें आती हैं. इन दो इलाकों से कांग्रेस को अपनी मौजूदा 42 सीटों में से सिर्फ 28 पर जीत मिलने की संभावना है. फिलहाल, कांग्रेस के दोबारा सक्रिय होने और अपने राजनीतिक रूख को मजबूत करने के बावजूद AAP की तुलना में उसे अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
कांग्रेस के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां इसलिए है, क्योंकि दलित मतदाताओं से परे उसके जन समर्थन में भारी कमी आई है. साथ ही राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति भी लगातार बिगड़ती जा रही है. इसके अलावा, कांग्रेस में गुटबाजी की लड़ाई ने पार्टी के नए नेतृत्व की चमक को फीका किया है. ये विश्लेषण हमें इस नतीजे पर पहुंचाता है कि पंजाब में एक लहर-रहित चुनाव होने वाला है. लेकिन आम आदमी पार्टी जिस तरह की नई राजनीति लेकर सामने आई है उसके प्रति जनता में झुकाव जरूर नजर आ रहा है.
राज्य में तमाम राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल के मद्देनज़र मतदाता फिलहाल अपनी पसंद और नापसंदगी को लेकर साफ तौर पर बंटे हुए हैं. यदि ऐसी ही स्थिति एक महीने और बनी रहती है, तो हम पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा देख सकते हैं, जिसमें AAP सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर सकती है. इसके बाद कांग्रेस का नम्बर होगा.