देश में हरियाणा एकमात्र ऐसा राज्य है जहां पर पराली जलाने (Stubble burning) की घटनाएं रुकने की बजाय तेजी से बढ़ रही हैं. ऐसे में अब सरकार ने किसानों पर सख्ती शुरू कर दी है. अब पराली जलाने वाले किसानों (Farmers) पर जुर्माना लगाने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है. सरकार ने एलान किया है कि यदि कोई भी किसान खेतों पर फसल अवशेष को जलाता है तो आईपीसी की धारा 188 के तहत उसे 6 महीने की जेल या 15000 रुपये तक का जुर्माना (Penalty) अथवा दोनों हो सकते हैं. राज्य सरकार को उम्मीद है कि किसान सख्ती से ही मानेंगे. उधर, आज हरियाणा सरकार जागरूकता के लिए हर जिले में रैली भी आयोजित कर रही है.
मनोहरलाल खट्टर सरकार ने अपील की है कि किसान भाई खेत में पराली न जलाएं. खेतों में आग लगाने से हवा में पीएम 2.5 का स्तर बढ़ जाता है. जिससे फेफड़ों और सांस संबंधित बीमारियां होती हैं. यही नहीं मिट्टी की जैविक गुणवत्ता भी प्रभावित होती है. उधर, कृषि विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. सुमिता मिश्रा जिला उपायुक्तों को निर्देश दिए हैं कि संबंधित जिलों में फ्लाइंग स्क्वायड और इंफोर्समेंट टीमों की संख्या बढ़ाई जाए. ताकि ऐसी घटनाओं पर रोक लग सके.
क्या करें किसान?
राज्य सरकार का कहना है कि किसान फसल अवशेषों का प्रबंधन करें. इसके लिए सब्सिडी पर मशीनरी लें. इस पर 50 से 80 फीसदी तक का अनुदान मिलेगा. सरकार पूसा बायो डीकंपोजर का भी प्रचार कर रही है. जिसके चार कैप्सूल की मदद से एक एकड़ की पराली सड़कर खाद बन जाएगी.
फसलों को नुकसान पहुंचाती है पराली
पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि पराली जलाने से पैदा हुए धुंध के कारण सूर्य की किरणें फसलों तक कम पहुंचती हैं. जिससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण और वाष्पोत्सर्जन की प्रकिया प्रभावित होती है. ऐसा होने से भोजन बनाने में कमी आती है. इस कारण फसलों (Crops) की उत्पादकता व गुणवत्ता खराब हो जाती है.
पराली जलाने की कितनी घटनाएं
केंद्र सरकार 15 सितंबर से सैटेलाइट (Satellite) के जरिए पराली जलाने की घटनाओं की मॉनिटरिंग कर रही है. 15 सितंबर से 17 नवंबर के बीच हरियाणा में पराली जलाने के 6094 मामले आ चुके हैं. जबकि 2020 में इसी अवधि के दौरान 3710 केस ही हुए थे. अब तक फतेहाबाद (1299), कैथल (1131), करनाल (934), जींद (764) एवं कुरुक्षेत्र (535) केस आ चुके हैं.