हरियाणा के कृषि वैज्ञानिकों ने खोजी बाजरे की नई बीमारी, इस खोज का फायदा किसानों को मिलेगा।

Parmod Kumar

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चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय (HAU) के वैज्ञानिकों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजरे की नई बीमारी व इसके कारक जीवाणु क्लेबसिएला एरोजेन्स की खोज की है. अब तक विश्व स्तर पर इस तरह की बाजरे की किसी बीमारी (Millet Disease) की खोज नहीं की गई है. वैज्ञानिकों ने इस रोग के प्रबंधन के कार्य शुरू कर दिए हैं व जल्द से जल्द आनुवांशिक स्तर पर प्रतिरोध स्रोत को खोजने की कोशिश करेंगे. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि वे जल्द ही इस दिशा में भी कामयाब होंगे.

 एचएयू के वैज्ञानिक हैं पहले शोधकर्ता

पौधों में नई बीमारी को मान्यता देने वाली अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी (APS), यूएसए द्वारा प्रकाशित प्रतिष्ठित जर्नल प्लांट डिजीज में वैज्ञानिकों की इस नई बीमारी की रिपोर्ट को प्रथम शोध रिपोर्ट के रूप में जर्नल में स्वीकार कर मान्यता दी गई है. अमेरिकन फाइटोपैथोलॉजिकल सोसाइटी पौधों की बीमारियों के अध्ययन के लिए सबसे पुराने अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठनों में से एक है. जो विशेष तौर पर पौधों की बीमारियों पर विश्वस्तरीय प्रकाशन करती है.

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दुनिया में इस बीमारी की खोज करने वाले सबसे पहले वैज्ञानिक हैं. इन वैज्ञानिकों ने बाजरा में स्टेम रोट बीमारी पर शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्था ने मान्यता प्रदान करते हुए अपने जर्नल में प्रकाशन के लिए स्वीकार किया है.

इन वैज्ञानिकों का रहा अहम योगदान

इस बीमारी की खोज करने में विश्वविद्यालय के पादप रोग वैज्ञानिक डॉ. विनोद कुमार मलिक मुख्य शोधकर्ता हैं. उन्होंने बताया कि इस बीमारी के शुरुआती लक्षण पत्तियों पर लंबी धारियों के रूप में दिखाई देते हैं व जल्द ही इन पत्तों की धारियों की संख्या में वृद्धि होती है. इसके बाद तने पर जलसिक्त घाव दिखाई देते हैं जो बाद में भूरे से काले हो जाते हैं. इस स्थिति तक गंभीर रूप से रोगग्रस्त पौधे मर जाते हैं, जिससे किसानों को फसल उत्पादन में नुकसान होता है.

मनुष्य की आंत से पौधों में आया यह जीवाणु

रुपात्मक, रोगजनक, जैव रासायनिक और आणविक स्तर पर जांच करने पर यह साबित हुआ है कि इस बीमारी का कारक जीवाणु क्लेबसिएला एरोजेन्स ही है. क्लेबसिएला एरोजेन्स जीवाणु मनुष्य की आंत में भी होता है जो किसी माध्यम से फसल में आया और फसल को नुकसान पहुंचाने लगा. विश्वविद्यालय के अन्य वैज्ञानिकों डॉ. पूजा सांगवान, डॉ. मनजीत सिंह, डॉ. राकेश पूनियां, डॉ. देवव्रत यादव, डॉ. पम्मी कुमारी और डॉ. सुरेंद्र कुमार पाहुजा का भी उनके इस प्रोजेक्ट में विशेष योगदान रहा है.

वर्ष 2018 में खरीफ फसल में दिखाई दिए थे लक्षण

अनुसंधान निदेशक डॉ. एसके सहरावत ने बताया कि पहली बार खरीफ-2018 में बाजरे में नई तरह की बीमारी दिखाई देने पर वैज्ञानिकों ने तत्परता से काम किया. तीन साल की मेहनत के बाद वैज्ञानिकों ने इस बीमारी की खोज की है. वर्तमान समय में राज्य के सभी बाजरा उत्पादक जिलों जिसमें मुख्य तौर पर हिसार, भिवानी और रेवाड़ी जिलों के खेतों में यह बीमारी 70 प्रतिशत तक देखने को मिली है.

इन राज्यों को मिलेगा फायदा

इस खोज का फायदा राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और महाराष्ट्र के किसानों (Farmers) को मिलता है, जहां सबसे अधिक बाजरा पैदा होता है. हरियाणा, जहां के वैज्ञानिकों ने इसकी खोज की है वह देश का चौथा सबसे बड़ा बाजरा (Bajra) उत्पादक सूबा है. यहां देश का लगभग 10.64 फीसदी बाजरा पैदा होता है.

बीमारी के बाद इसके उचित प्रबंधन का हो लक्ष्य

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बीआर कांबोज ने वैज्ञानिकों की इस खोज के लिए बधाई देते हुए भविष्य में इसके उचित प्रबंधन के लिए भी इसी प्रकार निरंतर प्रयासरत रहने की अपील की है. उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के बाद बीमारियों की सही व शीघ्र पहचान तथा उसके वास्तविक कारण का पता लगाना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है. रोग की शीघ्र पहचान योजनाबद्ध प्रजनन कार्यक्रम विकसित करने और रोग प्रबंधन में सहायक होगी. इस अवसर पर ओएसडी डॉ. अतुल ढींगड़ा एवं पादपरोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. हवा सिंह सहारण भी मौजूद थे.