इस साल राजस्थान में अलग कृषि बजट पेश होगा. इसकी प्रक्रिया शुरू हो गई है. पिछले साल कृषि क्षेत्र में नई सुविधाएं प्रदान करने के लिए 3,756 करोड़ का बजट पारित किया गया था. जिसमें कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने इस बात का उल्लेख किया था कि जैविक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया जाएगा. राजस्थान के जनजातीय समुदाय के किसानों ने भी इस बजट में अपने लिए कुछ मांगें रखी हैं. क्योंकि आदिवासी समुदाए का जैविक और प्राकृतिक खेती में महत्वपूर्ण योगदान है. प्रदेश में जनजातीय समुदाय की जनसंख्या लगभग 8.6 फीसदी है. इन्होंने कृषि बजट में अपने लिए छह प्रमुख मांगें रखी हैं.
जनजातीय समुदाय के बीच जैविक खेती के लिए काम करने वाले संगठन वागधारा के सेक्रेटरी जयेश जोशी, रिसर्च साइंटिस्ट डॉ. प्रमोद रोकडिया और पीएल पटेल ने इस समुदाय की मांगों को लेकर विस्तार से जानकारी दी. जोशी ने बताया कि किसानों ने आदिवासी जिलों के प्रत्येक पंचायत मुख्यालय पर बायोचार और सूक्ष्म जीव बैंक बनाने की मांग की है. मिट्टी की उर्वरता को पुनर्जीवित करने के उपाय के रूप में बायोचार (पौधे के पदार्थ से उत्पन्न चारकोल जो कि वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाने के साधन के रूप में मिट्टी में संग्रहित किया जाता है) और सूक्ष्मजीवों के उपयोग के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है.
बजट में क्या चाहते हैं किसान
1. बीज उत्पादन बोनस: जनजातीय समुदाय के उन्नत बीज उत्पादन एवं पारिवारिक आय के लिए बोनस राशि में 200 से 400 रुपये तक की वृद्धि की जानी चाहिए.
2. बीज परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना: वर्तमान में, बांसवाड़ा या आसपास के जिलों में कोई बीज परीक्षण प्रयोगशाला (STL-Seed Testing Lab) नहीं है. बीज जांच के लिए चित्तौड़गढ़ या जयपुर भेजा जा रहा है, जिसमें बहुत समय लगता है. इसलिए किसान बांसवाड़ा में एसटीएल की स्थापना की मांग कर रहे हैं.
3. दुग्ध डेयरी एवं संबंधित गतिविधियां: वर्ष 1986 में बांसवाड़ा में एक दूध डेयरी थी, जो अब काम नहीं कर रही है. डेयरी (Dairy) को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है ताकि कृषक समुदायों को इससे आय का अवसर मिल सके. इसके अलावा, हरे चारे के उन्नत बीज की मिनी किट, रियायती दर पर पशु चारा और मवेशी शेड सब्सिडी एक प्रमुख मांग है.
4. मिश्रित फसल पैटर्न वाली प्राकृतिक खेती: आदिवासी बेल्ट के किसान मिश्रित फसल का पालन कर रहे हैं, जिसमें मुख्य फसल के रूप में मक्का और उरद, अरहर, कपास, सोयाबीन (Soybean), लोबिया, तिल, धान शामिल हैं. यह एक सामान्य पारंपरिक प्रथा है जिसे इस क्षेत्र के किसान बिना अधिक तकनीकी, वित्तीय और सरकारी सहायता के निभा रहे हैं. इसलिए, प्रमुख मांगों में से एक तकनीकी सहायता और वित्तीय सहायता भी है.
5. बाजरे की छोटी फसलों के उन्नत किस्म के बीज की मिनी किट: आदिवासी क्षेत्र के किसानों को छोटी बाजरा फसलों की उन्नत किस्मों के बीजों की आवश्यकता होती है. जैसे कि प्रोसो बाजरा, बार्नयार्ड बाजरा, फिंगर बाजरा, फॉक्सटेल बाजरा. ये बाजरा आदिवासी समुदाय की पारंपरिक फसलों का एक हिस्सा रहा है. यह बारिश आधारित पारिस्थितिक तंत्र में मौजूदा ढीली भूमि और भौगोलिक स्थिति का समर्थन करता है. इसलिए, प्रमुख मांग बेहतर बीज और तकनीकी सहायता है.
6. जैविक खाद की उपलब्धता: आदिवासी बेल्ट में ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान हैं. वे अपने पोषण और आजीविका के लिए कृषि उपज पर निर्भर हैं. उनके सामने सबसे बड़ी समस्या रासायनिक खाद और इसका असंतुलित उपयोग है जो मिट्टी को अनुपजाऊ बना रहा है. उसकी भौतिक स्थिति को खराब कर रहा है. इसलिए, किसानों की मांग है की जैविक उर्वरक को तैयार करने वाले उपकरण उन्हें भारी छूट पर उपलब्ध कराया जाए.












































