नाथूसरी चोपटा – आधुनिक तरीके से खेती की जाए तो कमाई करने के लिए विपरीत परिस्थितियां भी सामने नहीं आती। गांव नाथुसरी कलां के किसान रामस्वरूप चौहान ने चार साल पहले ठेके पर 4 एकड़ जमीन लेकर सब्जियां लगाकर कमाई का जरिया खोजा। चार साल से ठेके पर जमीन लेकर उसमें मौसमी सब्जी घीया, तोरी, तरकाकड़ी, मूली, खरबूजा, तरबूज, करेला, बैंगन आदि की बिजाई मौसम के अनुसार करते हैं और करीब 10 लाख रुपए सालाना कमाई कर रहे हैं। इस समय मूली, बैंगन की अच्छी पैदावार हुई है
चार साल पहले शुरू की ठेके पर जमीन लेकर सब्जी की खेती
रामस्वरूप चौहान ने बताया कि पहले घर के खाली पड़े प्लाट में सब्जियां लगते थे उससे थोड़ी बहुत कमाई हो जाती थी। उन्हें सब्जियों के बारे में अच्छी जानकारी हो गई। फिर बड़े लेवल पर सब्जियां लगाने का विचार किया लेकिन खुद की जमीन नहीं होने के कारण जमीन ठेके पर लेकर सब्जी की खेती करने का मन बनाया। चार साल पहले चार एकड़ जमीन ठेके पर ली और तोरी, तरकाकड़ी, खरबूजा, तरबूज आदि लगाए उससे आमदनी शुरू हो गई
लीक से हटकर कुछ करने के जज्बे ने अपनों को गांव में एक अलग पहचान दिलाई। उन्होंने बताया कि वह 40 हजार रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन ठेके पर लेता हैं। उसमें पहली छमाही में तोरी, तरकाकड़ी, खरबूजा, तरबूज की बिजाई करते हैं और उसके बाद घीया, तोरी, मूली, बैंगन आदि की बिजाई कर कमाई हो जाती है। जिससे उन्हें पहले साल काफी अच्छा मुनाफा हुआ। अब हर साल करीब 2 लाख रुपए से ज्यादा प्रति एकड़ के हिसाब से कमाई होने लगी।
उन्होंने बताया कि नाथूसरी कलां, तरकांवाली, चोपटा तथा निकटवर्ती गांवों के लोग उनके खेत की सब्जियां काफी पसंद करते हैं। आधुनिक तरीके से खेती करके किसान रामस्वरूप चौहान अन्य किसानों का प्रेरणा स्रोत बन गया है। ठेके पर जमीन लेने की कारण नही मिल पाता सरकारी योजनाओं का लाभ। किसान रामस्वरूप चौहान ने बताया कि उसके खुद की जमीन नहीं है और ठेके पर लेकर सब्जियां लगाता है। जिस कारण से उसे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। उसे ना तो डिग्गी की सब्सिडी मिल पाती और ना ही ड्रिप सिस्टम से सिंचाई करने का अनुदान मिल पाता। इसके अलावा सब्जियां खराब होने पर मुआवजा भी नहीं मिलता। लेकिन अपनी मेहनत के बल पर भी वह अच्छी कमाई कर रहा है।
नजदीक विकसित हो सब्जी की मंडी –
रामस्वरूप चौहान ने बताया कि उसके क्षेत्र के आस पास सब्जी व फ्रूट की मंडी न होने के कारण अन्य स्थानों पर ले जाकर बेचने में यातायात खर्च ज्यादा आता है तथा बचत कम होती है। उन्होंने बताया कि अब तो आस पास के किसानों का रूझान भी सब्जी लगाने की ओर बढने लगा है। जिससे परंपरागत खेती के साथ अतिरिक्त कमाई होने लगी है। उसका कहना है कि अगर सब्जी की मंडी चोपटा या नजदीक में स्थापित हो जाए तो यातायात खर्च कम होने से बचत ज्यादा हो जाएगी।