हरियाणा में शाह के बार-बार आने की बड़ी वजह यह है कि पार्टी किसी भी कीमत पर हरियाणा को हाथ से निकलने देना नहीं चाहती। पार्टी का मानना है कि यदि हरियाणा में विपरीत परिणाम आए तो आगामी सालों में कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
दूसरी वजह यह है कि हरियाणा में सरकार व भाजपा नेतृत्व नया है। सैनी को कुर्सी संभाले मात्र चार महीने हुए हैं, जबकि बड़ौली को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त हुए मात्र एक हफ्ता। इससे पहले सैनी ही प्रदेश अध्यक्ष का भी प्रभार संभाल रहे थे। ऐसी स्थिति में कोई कमी न रह जाए, इसलिए शाह ने कमान खुद ही अपने हाथों में रख ली है
शाह रणनीति बनाने में माहिर माने जाते हैं। चुनावी मैदान में उतरने से पहले शाह ने चुनौतियों से जूझ रही भाजपा के लिए प्लान तैयार कर लिया है। उनकी रणनीति अगड़ी जातियों के साथ पिछड़ी व दलितों की आबादी को साधने की है। वहीं, भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती अपने कोर वोटर को पार्टी के साथ जोड़ना और सत्ता विरोधी लहर को कम करना है।