आजादी के आंदोलन से देश के उपप्रधानमंत्री तक का सफर तय करने वाले राजनीति के दबंग ताऊ थे देवीलाल

Bhawana Gaba

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हरियाणा में आज 25 सितंबर का दिन कहीं रक्तदान दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है, तो कहीं सम्मान दिवस के रूप में। इसकी वजह है ताऊ देवीवाल का जन्मदिन। देश के उपप्रधामंत्री और हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके चौधरी देवीवाल, जिन्होंने अपने लिए PM का पद ठुकराते हुए कहा था- ‘मैं सबसे बुजुर्ग हूं। मुझे सब ताऊ कहते हैं। मुझे ताऊ बने रहना ही पसंद है और मैं प्रधानमंत्री का पद विश्वनाथ प्रताप सिंह को सौंपता हूं।’ हरियाणा के जनक कहे जाने वाले ताऊ देवीवाल का नाम भारतीय राजनीति में बतौर किसान नेता दर्ज है। साल 1989 में बहुमत से संसदीय दल का नेता मान लिए जाने के बावजूद प्रधानमंत्री पद का ताज अपनी जगह किसी दूसरे शख्स को पहनाने वाली शख्सियत देवीलाल का जन्म 1914 को हुआ था। मिजाज से अक्खड़ और दबंग माने जाने वाले देवीलाल की गिनती उन चुनिंदा नेताओं में होती है, जो देश को आजादी मिलने से पहले और बाद में राजनीति में सक्रिय तौर से शामिल रहे।

देश की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका
महात्मा गांधी के आह्वान पर देश की आजादी की लड़ाई में कूदे देवीलाल ने लाला लाजपत राय के साथ प्रदर्शनों में भी कंधे से कंधा मिलाया। 1952 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने देवीलाल का इमरजेंसी के दौरान कांग्रेस से मोहभंग हो गया था। वह जनता पार्टी में शामिल हो गए। चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली तक सत्ता के गलियारों में उनकी बनी रही। खासतौर से 1987 से लेकर 1991 तक भारतीय राजनीति में वह किंगमेकर की भूमिका में रहे।

हुक्का, गंवई अंदाज…जमीनी पकड़ वाले नेता
सिरसा के चौटला गांव के जाट किसान घर से संबंध रखने वाले देवीलाल का समृद्ध राजनीतिक परिवार है। उनके बेटे, पोते तथा परपोते राजनीतिक में सक्रिय है। वर्तमान में हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला के परदादा ताऊ देवीलाल जमीनी पकड़ वाले नेताओं में शुमार किए जाते हैं। ग्रामीण जनता से हमेशा उनका संपर्क बना रहा। अचानक से किसी गांव में पहुंचकर भोजन करना, हुक्का पीते हुए ठेठ गंवई अंदाज में लोगों से बातचीत ने उन्हें जननायक का दर्जा दिलाया था।

लागू की थीं कई दूरगामी योजनाएं
देवीलाल ने हरियाणा में काम के बदले अनाज, जच्चा-बच्चा योजना, वृद्धावस्था पेंशन जैसी दूरगामी नीतियों को लागू किया। 6 अप्रैल, 2001 को चौधरी देवीलाल का निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार राजधानी दिल्ली में यमुना नदी के तट पर चौधरी चरण सिंह की समाधि किसान घाट के पास संघर्ष स्थल पर हुआ था।