चना की फसल लग चुकी है और ज्यादातर जगहों पर नवंबर महीने में ही इसकी खेती कर ली जाती है. लेकिन, ठंड के मौसम में चना के फसल में उकठा रोग (फ्यूजेरियम वील्ट) के कारण बड़े पैमाने पर नुकसान की आशंका रहती है. लेकिन, समय पर बुवाई और सही तरीकों से फसल की देखभाल कर इस समस्या को रोका जा सकता है.
कृषि विज्ञान केंद्र के पौधा संरक्षण विशेषज्ञ डॉ. मुकुल कुमार ने बताया कि यदि चना के बुवाई में देरी हो या बिना उपचार के बीजों का उपयोग किया जाए तो पैदावार घटने के साथ ही कीट और रोगों का प्रकोप बढ़ सकता है. खासतौर पर दिसंबर के मध्य के बाद बुवाई करने पर फली भेदक कीटों का हमला होने की संभावना अधिक रहती है.
चना में दिखे ऐसे लक्षण तो हो जाएं सावधान
उन्होंने बताया कि चना की फसल के लिए उकठा रोग सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है, जो पूरी फसल को नष्ट कर सकता है. यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम प्रजाति साइसेरी नामक फफूंद के कारण होता है, जो मिट्टी और बीजों से फैलता है. यह रोग पौधे के किसी भी विकास चरण में हमला कर सकता है. शुरुआत में यह खेत के छोटे हिस्सों में नजर आता है, लेकिन धीरे-धीरे पूरे खेत में फैल जाता है. रोगग्रस्त पौधे की पत्तियां मुरझा जाती है और बाद में पूरा पौधा सूख जाता है. जड़ के पास चीरा लगाने पर काले रंग की संरचना दिखाई देती है. विशेषज्ञों के मुताबिक, इस रोग का प्रकोप फसल में फली लगने से पहले ज्यादा खतरनाक होता है.
उठका रोग लगने पर इस दवा का करें छिड़काव
रोग की रोकथाम के लिए समय पर उपाय करना बेहद जरूरी है. डॉ. मुकुल कुमार ने बताया कि जैसे ही उकठा रोग के लक्षण दिखें, फसल की जड़ों में कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए. इसके अलावा, बुवाई से पहले बीजों का उपचार करना अनिवार्य है. रोग के प्रबंधन के लिए फसल की समय पर निगरानी और कवकनाशकों का सही तरीके से उपयोग करना चाहिए. विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को फसल चक्र और जैविक विधियों का भी सहारा लेना चाहिए, ताकि मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहे और रोग फैलने की संभावना कम हो. समय पर जानकारी और रोकथाम से ना केवल पैदावार बढ़ाई जा सकती है, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी बेहतर बनाई जा सकती है.