कांग्रेस लीडरिशप दोनों ही पक्षों के बीच संतुलन बनाना चाह रही है। जहां सिद्धू अपने लिए प्रदेशाध्यक्ष पद चाहते हैं, वहीं पार्टी की ओर से उन्हें डिप्टी सीएम बनाने के साथ-साथ चुनाव कैंपेन कमिटी के अध्यक्ष पद देने का विकल्प भी रखा गया है।
कहा जाता है कि सिद्धू ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था। उधर कैप्टन भी सिद्धू को ये अहम जिम्मेदारियां देने के पक्ष में नहीं थे। कहा जा रहा है कि अगर सिद्धू को बड़ी जिम्मेदारी दी गई तो कैप्टन अपने बागी तेवर दिखा सकते हैं।
सिद्धू ने की थी प्रियंका और राहुल से मुलाकात
कैप्टन ने अपने तेवर तो उसी समय दिखा दिए थे, जब सिद्धू की प्रियंका व राहुल से मुलाकात के अगले दिन उन्होंने हिंदू नेताओं को अपने घर लंच पर बुलाया था। कहने को लंच पर हुई यह मुलाकात राज्य के शहरी इलाकों में रह रही हिंदू आबादी को कांग्रेस की ओर आकर्षित करने को लेकर थी।
लेकिन सूत्रों के मुताबिक, इसमें प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर कौन हिंदू चेहरा हो सकता है, इसे लेकर भी मंथन हुआ। जिसमें दो नाम प्रमुखता से सामने आए, पूर्व केंद्रीय मंत्री व सांसद मनीष तिवारी व कैप्टन सरकार में मंत्री विजय इंदर सिंगला का। कहा जाता है कि इस मीटिंग में कैप्टन ने सिद्धू को बड़ी जिम्मेदारी दी जाने की सूरत में अपने विधायकों व समर्थक नेताओं की राय भी जानने की कोशिश भी की।
सिद्धू को प्रदेश की कमान न देने के पीछे कैप्टन की दलील है कि यह पद किसी हिंदू को देना चाहिए, ताकि प्रदेश के हिंदुओं को प्रतिनिधित्व भी हो सके। कैप्टन का मानना है कि सीएम व प्रदेश चीफ दोनों ही अगर जाट होते हैं तो दूसरे समुदायों को मौका नहीं मिलेगा।गौरतलब है कि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ भी हिंदू हैं। वहां हिंदू समुदाय खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है। ऐसे में कांग्रेस को डर है कि कहीं यह तबका छिटककर बीजेपी या आप की तरफ न चला जाए।
दरअसल, उस समय कैप्टन तत्कालीन प्रदेश चीफ प्रताप सिंह बाजवा को हटाने की मांग कर रहे थे। बाजवा राहुल गांधी के करीबी माने जाते थे और बाजवा को प्रदेश की कमान सौंपने के पीछे राहुल का हाथ ही माना जा रहा था।
आखिरकार कांग्रेस हाइकमान को कैप्टन की जिद के आगे बाजवा को हटाना पड़ा। प्रदेश की कमान कैप्टन के हाथों दी गई और कैप्टन ने अपने दम पर पिछले चुनावों में पार्टी को सत्ता तक पहुंचाया।
सत्ता बचाए रखने की चुनौती
कांग्रेस की एक बड़ी चुनौती पंजाब में अपनी सत्ता बचाए रखना है। वहां किसान आंदोलन के चलते कांग्रेस के लिए अभी भी गुंजाइश बनी हुई है। पार्टी को लगता है कि पिछले एक डेढ़ महीने से चल रही प्रदेश में खींचतान और सिद्धू की बयानबाजी को लेकर वहां लोगों के बीच पार्टी की छवि को नुकसान हुआ है।
प्रदेश के एक नेता का कहना था कि अगर सिद्धू को मुंहमांगा मिलता है तो सिर्फ सीएम और उनके समर्थक ही नहीं, संगठन के बड़े नेता व कैप्टन के दूसरे विरोधी भी सिद्धू के खिलाफ गोलबंद हो सकते हैं।
उत्तराखंड में नए सीएम बनने के बाद मुखर होते विरोध का उदाहरण देते हुए इन नेताओं का कहना है कि जब बीजेपी में दिल्ली (नरेंद्र मोदी वऔरअमित शाह) के फैसले पर विरोध का सुर बुलंद हो सकता है तो पंजाब कांग्रेस में क्यों नहीं?