BJP-JJP गठबंधन से नाखुश बीरेंद्र सिंह परिवार दस साल बाद फिर हुआ कांग्रेसी

Parmod Kumar

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बीरेंद्र सिंह के पार्टी छोड़ने के तीन बड़े कारण माने जा रहे हैं। जिसमें पहला बीरेंद्र सिंह जजपा के साथ भाजपा के समझौते को पंसद नहीं कर रहे थे। उचाना से भाजपा की टिकट पर मैदान में उतरी बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता को जजपा प्रत्याशी दुष्यंत चौटाला ने हरा दिया। जिसके बाद इन दोनों परिवारों में राजनीतिक टकराव चल रहा है। पिछले करीब साढ़े चार साल से दोनों परिवारों के बीच खींचतान चल रही है। बीरेंद्र सिंह ने 2 अक्टूबर 2023 को जींद में मेरी आवाज सुनो नाम से रैली कर भाजपा नेतृत्व को अल्टीमेटम दिया था कि या तो वह जेजेपी से नाता तोड़ लें नहीं तो वह बीजेपी में नहीं रहेंगे। भाजपा बीरेंद्र सिंह तथा दुष्यंत दोनों के साथ संतुलन बनाकर चलने का प्रयास कर रही थी। भाजपा ने कुछ समय पहले ही जजपा को एनडीए में शामिल किया था।

हिसार लोकसभा से सांसद बृजेंद्र सिंह की भाजपा से टिकट कटने की आशंका जताई जा रही थी। अगर बृजेंद्र सिंह को हिसार से टिकट मिलता तो भी प्रेमलता को उचाना से टिकट कटना तय था। भाजपा एक परिवार एक टिकट एक फार्मूले के तहत उचाना की सीट प्रेमलता को नहीं उतारती। ऐसे में बीरेंद्र सिंह अपने बेटे को लोकसभा में भेजने तथा अपनी उचाना सीट दोनों को सुरक्षित करने के लिए कांग्रेस में आए।

बीरेंद्र सिंह को जाट नेता के तौर पर पहचान मिलती है। किसान आंदोलन के समय वह किसानों के साथ खड़े दिखाई दिए। उन्होंने महिला पहलवानों तथा अग्निवीर के मुददे पर भी मतभेद जताया था। यह तीनों मुद्दे कहीं न कहीं उनके जाट वोट बैंक को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। इन कारणों के चलते भी वह भाजपा से खुश नहीं थे। ऐसे में उन्होंने पार्टी छोड़ने का फैसला लिया।

बीरेंद्र और दुष्यंत दोनों के बीच तीखी टिप्पणी करते रहे हैं। पिछले सप्ताह दुष्यंत चौटाला ने बीरेंद्र- बृजेंद्र सिंह पर कटाक्ष करते हुए कहा कि उन्होंने सिर्फ खोखला अल्टीमेटम जारी करने वाला बताया था। बीरेंद्र ने कुछ समय पहले सरकार में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में जेजेपी मंत्रियों के शामिल होने का आरोप लगाया था। उन्होंने हिसार में भाजपा के एक कार्यक्रम में नेहरु परिवार की सराहना की थी। बीरेंद्र सिंह दिवंगत राजीव गांधी और सोनिया गांधी के करीबी रहे हैं।