अगर यह स्थिति काफी दर्द वाली हो जाए या आप को काफी असहज महसूस होने लगे तो आपको डॉक्टर के पास जाना चाहिए। इसके अलावा अगर आप को डायबिटीज है या ब्लड फ्लो से जुड़ी कोई समस्या है तो भी आप को खुद से इलाज करने की बजाए डॉक्टर के पास जाना चाहिए।
कैलिसेस और कॉर्न स्किन की काफी मोटी और कठोर लेयर होती है जिसके माध्यम से स्किन खुद को प्रेशर या फ्रिक्शन से बचाने की कोशिश करती है। यह पैरों की उंगलियों और हाथों पर हो जाते हैं। अगर आप पूरी तरह से फिट और हेल्दी हैं तो आपको इनके इलाज की कोई जरूरत नहीं होती है।
यह अपने आप ही कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं लेकिन अगर आपको इनके दर्द या असहजता महसूस हो रही है तो आप इनका इलाज करवाने के लिए डॉक्टर के पास भी जा सकते हैं। हालांकि इनका होना कोई चिंता का विषय नहीं होता है।
आपको इनके लक्षणों और कारणों के बारे में जान लेना चाहिए और यह भी पता होना चाहिए कि यह गंभीर कब होते हैं ताकि आप डॉक्टर को समय पर दिखा सकें। कॉर्न्स और कैलिस दोनों में ही अंतर होता है। तो आइए जान लेते हैं इनके बारे में !
कैलिसेस और कॉर्न एक दूसरे से कैसे अलग हैं?
कॉर्न : यह छोटे और गहरे होते हैं और इनका सेंटर ज्यादा कठोर होता है। साथ ही इनके आस पास की स्किन सूज जाती है। जब आप इन्हें दबाते हैं तो आपको दर्द हो सकता है। इसके अलावा यह आपकी उंगलियों के ऊपर या बीच बीच में भी हो सकते हैं।
कैलिसेस : यह प्रेशर वाली जगहों पर होते हैं जैसे एड़ियों में, हथेली पर या घुटनों में। इसके अलावा इनमें आपको दर्द महसूस नहीं होता है। इनका साइज और शेप अलग अलग होते हैं और यह कॉर्न से बड़े साइज के होते हैं।
इनके होने पर आपकी स्किन काफी मोटी और रफ हो जाती है।
इसमें ऐसा महसूस होता है जैसे स्किन पर एक काफी कठोर और मोटा गोला हो गया हो।
स्किन के अंदर अकड़न महसूस होना या हल्का फुल्का दर्द होना।
स्किन का काफी ज्यादा ड्राई और फ्लैकी हो जाना।
कारण
इसके अलग अलग कारण हो सकते हैं। अगर आप गलत साइज का या छोटा जूता पहन लेते हैं तो आपको यह स्थिति हो सकती है। हाई हिल्स या ज्यादा ढीले जूतों के कारण भी ऐसा हो सकता है। अगर आप बिना सॉक्स पहने जूते पहन लेते हैं तो आप को यह स्थिति हो सकती है। अगर आप गिटार जैसे कुछ टूल्स का प्रयोग करते हैं जिनके कारण लगातार आपके हाथों का प्रेशर लगता है तो आप को यह स्थिति हो सकती है। कई बार जेनेटिक्स के कारण भी आपको कैलिसेस और कॉर्न का सामना करना पड़ सकता है।
रिस्क फैक्टर
अधिकतर यह स्थिति गलत जूते पहनने के कारण होती है। अगर आपको कोई ऐसी स्थिति है जिसमें पैरों पर ज्यादा प्रेशर पड़ता है तो भी आपको इस का सामना करना पड़ सकता है। कई बार बिना किसी रिस्क फैक्टर के केवल जेनेटिक के कारण भी आपको इस समस्या से जूझना पड़ सकता है।
बचाव
आपको बचाव करने के लिए इसके कारणों का पता करना होगा और इसके रिस्क फैक्टर से खुद को बचाना होगा। आपको जूते ऐसे पहनने चाहिए जिनमें आपकी पैरों की उंगलियों के पास अच्छा खासा स्पेस हो और वह एक दूसरे से रगड़ न खाएं। आप प्रोटेक्टिव कवरिंग का प्रयोग कर सकते है। आप अगर किसी यंत्र का प्रयोग करते हैं तो उसका प्रयोग करने से पहले हाथों में पैड आदि पहन सकते हैं। इन टिप्स का प्रयोग करके आप खुद का बचाव कर सकते हैं।