मनमाने दामों पर बिक रही किताबें व यूनिफार्म, लोगों ने शिक्षा मंत्री से लगाई गुहार, बोले- शिक्षा को न बनाए व्यापार

Lalita Soni

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books copies and uniforms are available at arbitrary prices in this district

प्राइवेट पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के रिजल्ट आने शुरू हो चुके हैं। बच्चों का नई कक्षाओं में रि एडमिशन हो रहा है। इसके लिए प्रतिदिन जिले के हर प्राइवेट पब्लिक स्कूल के बाहर अभिभावकों व बच्चों की भारी भीड़ दिखाई देती है। ज्यादातर सभी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों को स्कूल स्टाफ द्वारा यह बता दिया जाता है कि आप अपने बच्चों की किताबें कापियां व अन्य स्टेशनरी का सामान शहर की किसी भी बुक शॉप से ले सकते हैं या ऑनलाइन मंगवा सकते हैं। इसी प्रकार आप बच्चों की यूनिफॉर्म आप कहीं से भी ले सकते हैं। परंतु जब यह अभिभावक स्कूल के बाहर निकलते हैं तो स्कूल के बाहर एक दो लोग पर्चे व विस्टिंग कार्ड देते दिखाई दिए कि इस स्कूल की किताबें कापियां व यूनिफॉर्म इस दुकान से लें।

अभिभावकों का कहना है कि हालांकि स्कूल स्टाफ द्वारा जब उन्हें यह आश्वासन दिया गया कि आप अपने बच्चों की किताबें कापियां व यूनिफॉर्म किसी भी दुकान से ले सकते हैं। यह सुनकर अभिभावकों को बहुत खुशी भी हुई, परंतु जब अभिभावक बाजार में बुक स्टोर व स्टेशनरी की दुकानों पर बच्चों की किताबें कापियां व अन्य स्टेशनरी का सामान खरीदने गए तो – अभिभावकों को दुकानदारों की यह बात सुन निराशा हुई कि यह किताबें- कापियां तो केवल स्कूल संचालकों द्वारा निर्धारित दुकान से मिलेंगी। सूत्रों की मानें तो प्राइवेट पब्लिक स्कूल संचालकों द्वारा ही उनके निर्धारित पब्लिशर से हर स्कूल की हर कक्षाओं की हजारों किताबें कापियां के सेट कई महीने पहले ही छपवा लिए जाते है और इन पर पब्लिशर्स के मनमाने रेट भी प्रिंट रहते हैं।

एक ही निर्धारित दुकानों से किताबें कापियां व यूनिफार खरीदना अभिभावकों की मजबूरी बन जाता है। हर प्राइवेट पब्लिक स्कूल संचालक द्वारा शहर में निर्धारित उन्हीं की दुकान पर ही यह किताबें, कापियां व अन्य स्टेशनरी का सामान मिल रहा है। वह भी पूरे सेट में न कि एक एक किताब । अभिभावक इन दुकानों के बाहर लाइन लगाए हुए अपनी बारी का इंतजार करते हुए लूटने को बेबस नजर आए।

शिक्षा विभाग की मिलीभगत से चल रहा है यह धंधा

जिले में सक्रिय अभिभावक मंच एवं पेरेंट्स एसोसिएशन द्वारा प्राइवेट पब्लिक स्कूल संचालकों की मनमर्जियों के खिलाफ एक नहीं पचासों बार जिला शिक्षा अधिकारियों को शिकायत भी दी व ज्ञापन भी सौंपा है। परंतु अभिभावक मंच एवं पेरेंट्स एसोसिएशन का कहना है कि इसका शायद एक प्रतिशत असर भी प्राइवेट पब्लिक स्कूल संचालकों पर नहीं हुआ है, न ही अभी तक शिक्षा विभाग ने इन प्राइवेट पब्लिक स्कूलों की मनमानियों के खिलाफ कभी कोई कार्रवाई की है। इससे तो यही लगता है जिला शिक्षा विभाग की प्राइवेट पब्लिक स्कूल संचालकों के साथ अच्छी सांठ-गांठ है।

कई बार शिक्षा मंत्री को लगा चुके गुहार

अभिभावक मंच एवं पेरेंट्स एसोसिएशन के सदस्यों का कहना है कि प्राइवेट पब्लिक स्कूल संचालक हर साल हर कक्षाओं किताबों के सेट बदल देते हैं कुछ साल बाद यूनिफॉर्म भी बदल देते हैं। यह सब प्राइवेट पब्लिक स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों को लूटने का धंधा बनाया हुआ है। अभिभावकों ने इसकी शिकायत एक नहीं अनेकों बार शिक्षा मंत्री को भी की है परंतु अभिभावकों की इतनी शिकायतों, प्रदर्शन व गुहार के बावजूद भी इन बेबस मजबूत अभिभावकों का कहना है कि वह आज भी इन प्राइवेट पब्लिक स्कूल संचालकों के हाथों लुटने को मजबूर हैं। मनमाने दामों पर मिलती है किताबें, कापियां व यूनिफार्म प्राइवेट पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों का कहना है की उनके बच्चों की किताबें कापियां व यूनिफॉर्म स्कूल द्वारा निर्धारित की गई एक स्पेशल दुकान से ही मिलती है वह भी मनमाने दामों पर। किताबों, कापियों व स्टेशनरी का पूरा सैट लेना अभिभावकों के लिए जरूरी है। अभिभावक अगर दुकानदार से यह पूछ लें कि किताबों, कॉपियों के रेट तो बहुत महंगे हैं और अभिभावक यह कहें कि स्टेशनरी का सामान तो हमारे पास पिछले वर्ष का पड़ा है, इसे रहने दो तो दुकानदार दो टूक जवाब देता है। अभी मेरे पास समय नहीं है बाद में आना। यही हाल अभिभावकों का यूनिफॉर्म लेने वाली दुकान पर होता है यूनिफॉर्म बाजार रेट से दुगने दामों पर इन दुकानों से खरीदना अभिभावकों की मजबूरी बन चुका है।

 सामने आने से डरते हैं अभिभावक

हालांकि अभिभावक गुपचुप तरीके से इसकी शिकायतें तो आपस में करते ही हैं, परंतु वही स्कूल संचालकों के खिलाफ कोई भी शिकायत देने से यह अभिभावक अब भी डर हुए हैं उन्हें डर है कि प्राइवेट स्कूल संचालक भविष्य में उनके बच्चों के साथ बुरा व्यवहार ना करें या उनका | रिजल्ट ना खराब कर दें

करोड़ों के हो रहे वारे-न्यारे

सूत्रों की मानें तो स्कूल संचालकों द्वारा छपाई गए इन किताबों के सेट पर ही 50 प्रतिशत से ज्यादा कमीशन प्राईवेट स्कूल संचालक सीधे तौर पर कमा रहे हैं। यूनिफार्म पर भी स्कूल संचालक यूनिफॉर्म बेचने वाली दुकान से मोटा कमीशन ले रहे हैं, अगर एक प्राइवेट पब्लिक स्कूल में 2500 बच्चे भी पढ़ते। हैं तो हर कक्षा की किताबों के सेट का रेट अलग-अलग है। इन 20-25 दिनों में ही इन दुकानदारों द्वारा एक स्कूल की ही करोड़ों रुपए की किताबे, कॉपियां व स्टेशनरी का सामान बेच दिया जाता है। जिसमें 50 प्रतिशत से ज्यादा स्कूल संचालकों को सीधे मुनाफा होता है।

अभिभावक बोले : शिक्षा को न बनाएं व्यापार

सरेआम बाजार में इन निर्धारित दुकानदारों के हाथों लूट रहे बच्चों के अभिभावकों ने जिला शिक्षा विभाग व शिक्षा मंत्री को गुहार लगाई है कि शिक्षा को व्यापार ना बनने दें। जिला शिक्षा विभाग द्वारा अभिभावकों की समस्याओं पर ध्यान दिया जाए। अभिभावकों की समस्या का निदान किया जाए ताकि वे मजबूरी में नहीं बल्कि खुशी से अपने बच्चों को इन स्कूलों में पढ़ाकर अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बना सके। ऐसा न करें कि इन अभिभावकों का विश्वास ही प्राइवेट पब्लिक स्कूल संचालकों से उठ जाए।