- अवैध धर्मांतरण मामले में संविधान के अनुच्छेद- 25 के उल्लंघन का दिया हवाला
- अंध विश्वास और काला जादू जैसी हरकत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में नहीं
- याचिका में शीर्ष अदालत से सरला मुद्गल केस में दिए गए फैसले को लागू करने की मांग
सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अंधविश्वास के चलन, काला जादू और अवैध व जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने की मांग की गई है। इस याचिक में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह अवैध धर्मांतरण और काला जादू जैसे चलन पर रोक लगाए। सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल कर केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय और लॉ मिनिस्ट्री के साथ-साथ देश भर के तमाम राज्यों को प्रतिवादी बनाया गया है।
अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट कर सकती है सुनवाई
एडवोकेट उपाध्याय ने एनबीटी को बताया कि सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते इस अर्जी पर सुनवाई कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट दाखिल अर्जी में कहा गया है कि जबरन धर्म परिवर्तन और इसके लिए काला जादू के इस्तेमाल पर रोक लगाई जाए। धर्म परिवर्तन के लिए साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल हो रहा है। देश भर में हर हफ्ते ये सब हो रहा है जिसे रोकने की जरूरत है। इस तरह के धर्मांतरण के शिकार लोग गरीब तबके से आते हैं। इनमें से ज्यादातर सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े हैं और खासकर एससी व एसटी श्रेणी से ताल्लुक रखने वाले लोग हैं।
अनुच्छेद 14, 21 और 25 के उल्लंघन का दिया हवाला
इस तरह से अंधविश्वास का चलन, काला जादू और अवैध धर्मांतरण का मामला संविधान के अनुच्छेद- 14, 21 और 25 का उल्लंघन करता है। ये समानता के अधिकार, जीवन के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दखल है। हमारा संविधान सेक्युलर है और वह संविधान का अभिन्न अंग है और उक्त धर्म परिवर्तन और काला जादू आदि का चलन सेक्युलर सिद्धांत के भी खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद-25 धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इसमें कहा गया है कि सभी नागरिक को समान अधिकार है कि वह अपने धर्म को माने और धार्मिक प्रैक्टिस करे। इसमें शर्त लगाई गई है कि पब्लिक ऑर्डर, नैतिकता और हेल्थ पर विपरीत असर नहीं होना चाहिए।
सभी नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता बनाए रखने की अपील
ऐसे में ये साफ है कि किसी भी तरह से धन बल का प्रयोग करके धर्मांतरण अथवा धर्म परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। और इस तरह से देखा जाए तो अंधविश्वास और काला जादू जैसी हरकत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के दायरे में नहीं है। साथ ही याचिका में कहा गया है कि सरकार इंटरनैशनल लॉ से भी बंधा हुआ है जिसके तहत राज्य (सरकार) की ड्यूटी है कि वह प्रत्येक नागरिक को प्रोटेक्ट करे और उसके धार्मिक स्वतंत्रता को बनाए रखे। सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि सरला मुद्गल केस में दिए गए फैसले को लागू किया जाए और धर्म के नाम पर किसी को एब्यूस होने से बचाने के लिए कमिटी का गठन किया जाए।
मौलिक अधिकारों के हनन का दिया हवाला
याचिकाकर्ता ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट हेल्पलेस नहीं है और उसे अनुच्छेद-32 के तह असीम अधिकार मिले हए हैं। सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया जाए कि वह अंधविश्वास, काला जादू और अवैध धर्म परिवर्तन को रोका जाए। धमकी, प्रलोभन और बहला फुसला कर यानी शाम दाम दंड भेद से धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है उसे रोका जाए क्योंकि ये न सिर्फ मौलिक अधिकारों का हनन है बल्कि ये संविधान के सेक्युलर सिद्धांत के खिलाफ है।