केंद्र सरकार की बेटी बचाओ, बेटी पढाओ योजना का कई राज्यों में प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस योजना के लिए उपलब्ध कराए गए फंड के लगभग 80 प्रतिशत हिस्से का इस्तेमाल सिर्फ इस योजना के प्रचार-प्रसार और विज्ञापनों के लिए किया गया है. महिला अधिकारिता मामलों की समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में फंड के खराब इस्तेमाल पर निराशा जताते हुए इसकी जानकारी दी है.
महाराष्ट्र BJP लोकसभा सांसद हीना विजयकुमार गावित की अध्यक्षता वाली समिति ने गुरुवार को लोकसभा में बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना के संदर्भ में शिक्षा के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण पर अपनी पांचवीं रिपोर्ट पेश की. समिति ने सदन में बताया, ‘2014-15 में अपनी स्थापना के बाद से 2019-20 तक, इस योजना के तहत कुल बजटीय आवंटन 848 करोड़ रुपये था. इसमें 2020-21 का कोविड-त्रस्त वित्तीय वर्ष शामिल नहीं है. इस दौरान राज्यों को 622.48 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई थी.
योजना पर फंड का 25.13 प्रतिशत हिस्सा हुआ खर्च
पैनल की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘राज्यों ने केवल 25.13 प्रतिशत फंड यानी 156.46 करोड़ रुपये ही इस योजना पर खर्च किए हैं, जो योजना का बेहतर प्रदर्शन नहीं है.’ समिति ने आगे कहा कि 2016- 2019 के दौरान जारी किए गए कुल 446.72 करोड़ रुपये में से केवल मीडिया वकालत पर 78.91 प्रतिशत खर्च किया गया. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति बेटी बचाओ बेटी पढाओ के संदेश को लोगों के बीच फैलाने के लिए मीडिया अभियान चलाने की जरूरत को समझती है, लेकिन योजना के उद्देश्यों को बैलेंस करना भी उतना ही जरूरी है.’
क्या है बेटी बचाओ बेटी पढाओ योजना?
रिपोर्ट के मुताबिक, पैनल ने सिफारिश की है कि सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य में क्षेत्रीय हस्तक्षेप के लिए नियोजित खर्च आवंटन पर ध्यान देना चाहिए. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत में की थी. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से पूरे जीवन-काल में शिशु लिंग अनुपात में कमी को रोकने में मदद मिलती है और महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़े मुद्दों का समाधान होता है.
तीन मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित की जा रही ये योजना
यह योजना तीन मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित की जा रही है अर्थात महिला और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय. इस योजना के मुख्य घटकों में शामिल हैं- प्रथम चरण में PC और PNDT Act को लागू करना, राष्ट्रव्यापी जागरूकता और प्रचार अभियान चलाना और चुने गए 100 जिलों (जहां शिशु लिंग अनुपात कम है) में विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कार्य करना. बुनियादी स्तर पर लोगों को प्रशिक्षण देकर, संवेदनशील और जागरूक बनाकर तथा सामुदायिक एकजुटता के माध्यम से उनकी सोच को बदलने पर जोर दिया जा रहा है.