बच्चों को अप्रैल में कागजों में ही मिला मिड-डे मील, स्कूलों में राशन पहुंचा न फ्लेवर दूध

Parmod Kumar

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सरकारी स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा तक के लगभग 16 लाख बच्चों को अप्रैल महीने का मिड-डे मील कागजों में ही मिला।
सरकारी स्कूलों में स्कूलों में मिड-डे मील परोसा जा रहा है, जबकि ऐसा हुआ ही नहीं। राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने इसकी पोल खोलकर रख दी है। संघ के खुलासे के बाद मौलिक शिक्षा निदेशालय में हडकंप मचा हुआ है। सूत्रों के अनुसार अंशज सिंह ने मिड-डे मील शाखा से रिपोर्ट मांगी है कि अप्रैल महीने में स्कूल खुलने के बाद बच्चों को दोपहर का भोजन क्यों नहीं मिला। मुख्यालय स्तर से जिलों को राशन की आपूर्ति क्यों नहीं की गई। निदेशक के पास तो यही सूचना है कि स्कूल खुलने के बाद मिड-डे मील परोसा जा रहा है। चूंकि, 18 मार्च 2020 के बाद से स्कूल कोरोना के कारण बंद होने पर बच्चों को सूखा राशन ही घर-घर वितरित किया जा रहा था, जबकि कुकिंग लागत सीधे उनके बैंक खाते में डाल दी जाती थी। पिछले साल विभाग ने एक आदेश जारी कर सभी स्कूलों के मिड-डे मील बैंक खातों को बंद करवा दिया गया था। इससे शिक्षकों की परेशानी बढ़ गई है। अब गेहूं, चावल के अलावा अब अन्य सभी प्रकार का राशन, मसाले, मौसमी सब्जियां, खीर के लिए दूध, गैस सिलिंडर आदि की खरीद किसी विक्रेता के जरिये की जाएगी। विभाग स्कूल के खातों में कोई राशि देने के बजाय पीएफएमएस यानि पब्लिक फाइनेंस मैनेजमेंट सस्टिसे ही सीधे विक्रेता के खाते में डालेगा। स्कूल अपनी तरफ से बीईओ को विक्रेता का सत्यापित विवरण देगा, फिर बीईओ से डीईईओ तक सत्यापित होकर अंत में डीईईओ स्तर पर अपडेट किया जाएगा। राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रधान तरुण सुहाग व महासचिव सुनील बास ने कहा कि मिड-डे मील का काम विभाग को शिक्षकों की बजाय किसी दूसरी एजेंसी से करवाना चाहिए। जिस प्रकार ये कार्य गुरुग्राम व कुरुक्षेत्र में इस्कान को दे दिया गया है। जब तक कोई एजेंसी नियुक्त न हो, तब तक किसी भी परेशानी से बचने के लिए स्कूल को सीधा बजट देने की व्यवस्था ही लागू रखी जाए। स्कूलों में मिड-डे मील के लिए राशन व अन्य सामग्री भेजना सुनिश्चित करें।