हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर के लिए भिवानी दौरा भारी पड़ता जा रहा है। पहले जज के प्रति की गई टिप्पणी को लेकर बयान वापस लेना पड़ा तो अब दलित समाज ने सीएम मनोहर को लीगल नोटिस भेजा है।
भिवानी के गांवों के दौरे के दौरान गांव धनाना में मुख्यमंत्री ने एक जनसंवाद के दौरान एससी समाज के लिए प्रतिबंधित शब्द का प्रयोग किया। जिसकी वीडियो वायरल होने के बाद एससी समाज ने मुख्यमंत्री की भाषा पर आपत्ति जताई है। दलित अधिकार कार्यकर्ता वकील रजत कल्सन में इस मामले में मुख्यमंत्री मनोहर लाल को कानूनी नोटिस भेजा है जिसमें मुख्यमंत्री से मांग की गई है इस मामले में वे प्रदेश की अनुसूचित जाति समाज की जनता से माफी मांगे।
दलित अधिकार कार्यकर्ता अधिवक्ता रजत कल्सन ने भेजा लीगल नोटिस
कल्सन ने अधिवक्ता प्रवेश महिपाल के मार्फत भेजे गए लीगल नोटिस में कहा है कि मनोहर लाल पिछले दो बार से हरियाणा के मुख्यमंत्री हैं। प्रदेश के सर्वोच्च व जिम्मेदार पद पर आसीन है। मुख्यमंत्री बनने के समय उन्होंने संविधान की शपथ ली थी कि वे बिना किसी धर्म, जाति, संप्रदाय, पंथ या लिंग के भेदभाव के आधार पर पूरे प्रदेश की जनता का विकास करेंगे। लेकिन भिवानी दौरे के दौरान उन्होंने भिवानी के गांव धनाना में भारत सरकार व हरियाणा सरकार द्वारा प्रतिबंधित शब्द का एससी समाज के लिए प्रयोग किया, जिस पर पूरे प्रदेश के एससी समाज को भारी आपत्ति है।
हरिजन शब्द का इस्तेमाल
कल्सन ने जानकारी दी कि 1982 में ही भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा भारत के राष्ट्रपति के माध्यम से देश के प्रत्येक प्रदेश व केंद्र शासित प्रदेश की मुख्य सचिवों को नोटिफिकेशन जारी गया था। जिसमें विवादित शब्द को प्रतिबंधित किया गया था। इसके अतिरिक्त माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी मंजू देवी बनाम ओमकार जीत सिंह आहलूवालिया अपील नंबर 570/ 2017 के मामले में स्थापित किया है कि हरिजन शब्द का इस्तेमाल आजकल अनुसूचित जाति जनजाति समाज के लोगों को नीचा दिखाने व उन्हें अपमानित करने के लिए किया जाता है, सुप्रीम कोर्ट ने इस शब्द को अपराधिक का बताया है।
कलसन ने मुख्यमंत्री को भेजे लीगल नोटिस में उनसे मांग की है कि मुख्यमंत्री 15 दिन के अंदर इस शब्द के इस्तेमाल के बारे में सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, डिजिटल मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बयान जारी कर माफी मांगे नहीं तो समाज की तरफ से उनके खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी। कल्सन ने मुख्यमंत्री से मांग की कि इस शब्द इस्तेमाल को रोकने के बारे में विधानसभा में एक बिल भी लाया जा सकता हैं। मुख्यमंत्री इस बारे में अध्यादेश भी जारी कर सकते हैं ताकि इस आपत्तिजनक शब्द का सरकारी व व्यवहारिक भाषा में प्रयोग से रोका जा सके।