सुरजेवाला से विवाद का अंत करने खुद मैदान में उतरे सीएम सैनी, ‘डूम’ जाति के लोगों के साथ भोजन करके देंगे जवाब !

parmodkumar

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चंडीगढ़: हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी की ओर से कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला को डोम कहे जाने के बाद शुरू हुए विवाद का अंत करने मुख्यमंत्री खुद मैदान में उतर रहे हैं। हरियाणा के इतिहास में सोमवार को पहली बार दलित, डोम (डूम), समाज के प्रतिनिधि मुख्यमंत्री के अतिथि बनेंगे। मुख्यमंत्री समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात करके उनकी समस्याओं को जानेंगे तथा उनके साथ भोजन करेंगे।

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने हरियाणा सरकार पर रजिस्टर्ड किसानों से धान की खरीद न करने का आरोप लगाया था। सुरजेवाला ने इस संबंध में कई तथ्य पेश किए तो कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा ने उसी दिन उन पलटवार किया। इसके बाद एक नवंबर को हरियाणा दिवस के मौके पर गोहाना में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नायब सैनी ने रणदीप सुरजेवाला को सरकारी डूम या डोम कहा था, जिसके बाद कांग्रेस इसे दलितों का अपमान बता रही है।

कांग्रेस लगातार मुख्यमंत्री को इस मुद्दे पर घेर रही है। नायब सैनी के बयान के बाद रणदीप सुरजेवाला ने भी उन्हें ‘एक एक्सीडेंटल मुख्यमंत्री’ करार दिया था। कांग्रेस का कहना है कि नायब सैनी अहंकार में चूर होकर दलित समाज का अपमान कर रहे हैं। पिछले तीन दिनों से भाजपा तथा कांग्रेस के नेता इस मुद्दे पर एक-दूसरे को घेर रहे हैं।

बीजेपी ने खेल दिया बड़ा दांव
इस खींचतान को समाप्त करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने बड़ा दांव खेल दिया है। हरियाणा में डूम समाज के प्रतिनिधि सोमवार को चंडीगढ़ स्थित मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचकर मुख्यमंत्री नायब सैनी का अभिनंदन करेंगे। मुख्यमंत्री लोगों से बातचीत कर उनकी समस्याओं को जानेंगे। यही नहीं मुख्यमंत्री डूम समाज के प्रतिनिधियों के साथ भोजन भी करेंगे। हरियाणा में राजनीतिक बयानबाजी के बाद पैदा हुए जातिवादी विवाद के बाद मुख्यमंत्री का यह कांग्रेस पर बड़ा पलटवार होगा।

कौन होते हैं डोम अर्थात डूम
डूम को लेकर को लेकर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग परिभाषाएं हैं। प्राचीन काल में में डोम ढोल बजाने वालों की जाति थी। तंत्र शास्त्रों के अनुसार डोम गायन और संगीत के व्यवसाय में लगे हुए थे। इनमें से कुछ शासक की नीतियों का जनता में प्रचार करते थे। कुछ विपरीत होकर शासक के उलट प्रचार करते थे। पुरातन और ऐतिहासिक मान्यताओं में उन्हें दलितों की सबसे निचली अछूत जाति माना जाता था। उनका पारंपरिक व्यवसाय शवों का दाह संस्कार करना था। उन्हें सोने और चांदी के आभूषण पहनने की मनाही थी। उन्हें पालकी ढोने वाले के रूप में भी काम करना पड़ता था, लेकिन उन्हें अपनी शादियों में पालकी का उपयोग करने की मनाही थी।