अदरक की खेती की संपूर्ण जानकारी ।मात्र एक बीघा में कमाये लाखों रुपये ।किसान क्लब
अदरक की जैविक खेती से कम जमीन में बड़ा मुनाफा
किसान चंपा लाल की कहानी: 7 सालों का अनुभव
उदयपुर जिले की फलासिया पंचायत समिति के चंपा लाल गरास ने जैविक अदरक की खेती में 7 साल का अनुभव हासिल किया है। अदरक की खेती के लिए सही समय, उचित तकनीक और जैविक तरीकों से वे हर साल अच्छे मुनाफे कमा रहे हैं। आइए जानते हैं उनकी खेती की प्रक्रिया और उससे होने वाले लाभ के बारे में।
अदरक की बुवाई का सही समय और तैयारी
- बुवाई का सही समय: अदरक की बुवाई मई-जून या जून-जुलाई में की जाती है।
- खेत की तैयारी:
- मार्च-अप्रैल में खेत की दो बार जुताई करें।
- सूखी जुताई से खेत के कीट व अवशेष नष्ट हो जाते हैं।
- बुवाई से पहले खेत को सिंचाई देकर 5-7 दिन तक छोड़ दें।
- देसी खाद जैसे गाय-भैंस के गोबर का उपयोग करें।
- ट्राइकोडर्मा और पीएसबी कल्चर को गोबर खाद के साथ मिलाकर खेत का उपचार करें।
बीज की तैयारी और बुवाई का तरीका
- बीज चयन: अदरक के छोटे-छोटे टुकड़ों को ट्राइकोडर्मा के घोल में डुबोकर सुखाया जाता है।
- बीज की बुवाई:
- खेत में एक फीट की दूरी पर बीज बोएं।
- दो लाइनों के बीच 7-8 इंच का अंतर रखें।
- बुवाई के बाद खेत को हल्की सिंचाई दें।
- सिंचाई: शुरुआती दिनों में 10-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। मानसून के बाद सिंचाई की आवश्यकता कम हो जाती है।
उत्पादन और संभावित आय
- 1 क्विंटल बीज से करीब 30-35 क्विंटल अदरक का उत्पादन होता है।
- अदरक की कीमत:
- सामान्य बिक्री के लिए ₹80 प्रति किलो।
- बीज के रूप में बिक्री के लिए ₹140-₹150 प्रति किलो।
- छोटे क्षेत्र (एक बीघे से कम) में लगभग ₹4.5 लाख तक की आय संभव है।
बीमारियों और समस्याओं का समाधान
- जड़ गलन (रूट रोट):
- खेत में पानी जमा न होने दें।
- बारिश के पानी की निकासी के लिए खेत को ढलान में तैयार करें।
- ट्राइकोडर्मा और जैविक दवाओं का उपयोग करें।
- कीट प्रबंधन:
- कीटों से बचाव के लिए जैविक पद्धतियों का प्रयोग करें।
- जीवामृत (गोबर, गौमूत्र, छाछ) का छिड़काव करें।
अदरक की खेती का महत्व और डिमांड
- अदरक की खेती में जैविक विधियों का उपयोग न केवल पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, बल्कि इसकी बाजार में भी काफी मांग है।
- चंपा लाल ज्यादातर बीज के रूप में अदरक बेचते हैं, जिससे उन्हें अधिक लाभ प्राप्त होता है।
निष्कर्ष
अदरक की जैविक खेती से कम क्षेत्र में भी अधिक उत्पादन और मुनाफा संभव है। चंपा लाल की यह कहानी बताती है कि सही तकनीक और अनुभव से किसानों को बड़ा लाभ हो सकता है। जैविक खेती अपनाकर न केवल उत्पादन बढ़ाया जा सकता है, बल्कि पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सकता है।
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