पंजाब कांग्रेस में घमासान तेज हुआ, हरीश रावत के आरोपों पर अमरिंदर के सवाल, बागियों को क्यों दी छूट?

Parmod Kumar

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पंजाब में अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ने की घोषणा की। इसके एक दिन बाद उत्तराखंड के पूर्व सीएम और पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ने उन्हें निशाना बनाया। उन्होंने आरोप लगाया कि कैप्टन ने कहा कि कांग्रेस लीडरशिप ने उन्हें अपमानित किया, यह सब उन्होंने सहानुभूति पाने के लिए किया।

अमरिंदर की गृह मंत्री अमित शाह के साथ बैठक पर, रावत ने कहा कि यह उनकी धर्मनिरपेक्ष साख पर सवालिया निशान लगाता है। रावत ने कहा, ‘अमरिंदर की विचारधारा भाजपा नेताओं वाली नहीं है और मेरा मानना है कि वे केवल अमरिंदर को एक मुखौटा के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।’

अमरिंदर बोले, पहले ही इस्तीफे की पेशकश रखी थी

अमरिंदर ने रावत पर पलटवार किया। उन्होंने कहा कि उनका यह बयान पार्टी की दयनीय हालत के चलते आया है। सिंह ने खुद के दबाव में होने की रावत की टिप्पणी की हंसी उड़ाते हुए कहा, ‘मुख्यमंत्री के तौर पर इस्तीफा देने से तीन हफ्ते पहले, मैंने (कांग्रेस अध्यक्ष) सोनिया गांधी को अपने इस्तीफे की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने मुझे पद पर बने रहने को कहा था।’

पंजाब के पूर्व सीएम ने कहा कि पूर्व पिछले कुछ महीनों से उन पर सिर्फ कांग्रेस के प्रति निष्ठावान होने का दबाव था क्योंकि इसके चलते ही वह बार-बार अपमान को सहन कर रहे थे। ‘दुनिया ने मेरे ऊपर हुए अपमान को देखा, फिरभी रावत इसके विपरीत दावे कर रहे हैं।’

’18 वादों से 5 पर आए, फिर भी नहीं किए पूरे’

देहरादून में मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए, रावत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अमरिंदर ने किसी के दबाव में आकर इस तरह कि टिप्पणी की है। उन्हें इस बारे में फिर से सोच लेना चाहिए। उन्हें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बेजीपी मदद नहीं करनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘एक आम धारणा थी कि अमरिंदर और बादल गुप्त रूप से एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। मैं हमेशा विनम्रतापूर्वक उन्हें सुझाव देता था कि हमारे चुनावी वादों पर काम करें। मैंने कैप्टन साब के साथ इन मुद्दों पर कम से कम पांच बार चर्चा की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।’

‘बेअदबी मामले में भी नहीं की कार्रवाई’

रावत ने कहा कि अमरिंदर के कार्यकाल के दौरान, बेअदबी पर कैबिनेट की बैठकों में गरमागरम चर्चा हुई और बाद में, कई प्रमुख मंत्री इस शिकायत के साथ दिल्ली आए कि कांग्रेस उनके साथ मुख्यमंत्री के रूप में पंजाब चुनाव नहीं जीत सकती। उन्होंने कहा कि समाधान के तौर पर कांग्रेस आलाकमान ने तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया, जिसने पंजाब के 150 से अधिक प्रमुख नेताओं को सुना। रावत ने कहा, इस बैठक में कांग्रेस विधायकों के भारी बहुमत ने अमरिंदर प्रशासन की कार्यशैली पर स्पष्ट रूप से असंतोष व्यक्त किया था।

लंबी चर्चा के बाद, अमरिंदर 18 बिंदुओं को लागू करने के लिए सहमत हुए, जो पैनल ने कांग्रेस अध्यक्ष को बताए थे। हालांकि, अमरिंदर ने इन 18 बिंदुओं में से एक को भी लागू नहीं किया।

‘जिद्दी अमरिंदर को नहीं चाहिए किसी की सलाह’

हरीश रावत ने कहा, ‘अमरिंदर जिद्दी हैं, उनका मानना था कि उन्हें अपने विधायकों, मंत्रियों और पार्टी नेतृत्व सहित किसी से भी सलाह की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, मैं फिर से उनके घर गया और उनके साथ उनके अधिकारियों के साथ लंबी चर्चा की। हम पांच बिंदुओं पर सहमत हुए, जिसे उन्होंने अगले 10 दिनों के भीतर लागू करने का वादा किया। इसके बाद, 20 दिन बीत गए, और उन्होंने फिर कुछ नहीं किया। कांग्रेस विधायक और मंत्री बेचैन हो रहे थे।’

हरीश रावत ने कहा कि 43 विधायकों ने सीएलपी बैठक की मांग को लेकर अमरिंदर के खिलाफ एक पत्र पर हस्ताक्षर किए। रावत ने कहा कि सोनिया गांधी ने 43 विधायकों के हस्ताक्षर वाली शिकायतों के बारे में भी अमरिंदर से बात की।

अमरिंदर ने दागे सवाल पर सवाल

रावत की इस टिप्पणी का मज़ाक उड़ाते हुए कि वह दबाव में थे, अमरिंदर ने कहा कि पिछले कुछ महीनों से उन पर कांग्रेस के प्रति अपनी वफादारी का एकमात्र दबाव था, जिसके कारण वह अपमान के बाद अपमान सहन करते रहे। उन्होंने कह, ‘अगर पार्टी का इरादा मुझे अपमानित करने का नहीं था तो नवजोत सिंह सिद्धू को महीनों तक सोशल मीडिया और अन्य सार्वजनिक मंचों पर मेरी खुलेआम आलोचना करने और हमला करने की अनुमति क्यों दी गई? पार्टी ने सिद्धू के नेतृत्व में विद्रोहियों को मेरे अधिकार को कम करने के लिए खुली छूट क्यों दी? साढ़े चार साल तक मैं पार्टी को सौंपे गए चुनावी जीत की निर्बाध होड़ को कोई संज्ञान क्यों नहीं दिया गया।’