हरियाणा में डीएपी संकट: कमजोर योजना और केंद्र के पास स्टॉक न होने की वजह से बिगड़े थे हालात !

parmodkumar

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पिछले साल की तरह इस बार भी हरियाणा समेत अन्य राज्यों के किसानों को डीएपी खाद संकट से गुजरना पड़ा। सरकार भले ही दावा करती हो कि डीएपी खाद की कोई कमी नहीं थी, मगर जब डीएपी की मांग सबसे पीक पर थी तो उस दौरान करीब 40 हजार टन डीएपी कम वितरित किया गया था।

2023 में सितंबर से लेकर सात नवंबर तक दो लाख 11 हजार मीट्रिक टन डीएपी की खपत हुई थी, जबकि इसी समयावधि में इस बार एक लाख 71 हजार मीट्रिक टन डीएपी किसानों तक पहुंच पाया था। इसकी बड़ी वजह डीएपी का स्टॉक समय पर नहीं पहुंच पाना था।

केंद्र के पास शुरुआत में स्टॉक बहुत कम था। केंद्र सरकार के पास एक अक्तूबर के पास 15-16 लाख टन डीएपी मौजूद था, जबकि मांग करीब 27 से 30 लाख टन की थी। विशेषज्ञ कहते हैं कि यह स्थिति हर साल बनती है। पिछले कई सालों से डीएपी का खाद का संकट चला रहा है। जब 15 दिन में ही इसकी सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है तो पहले से ही स्टॉक मंगवाकर रखना चाहिए था। हालांकि इस बार पिछली बार के मुकाबले मांग भी बढ़ी है। करीब 21 हजार टन डीएपी की मांग बढ़ी है। राज्य सरकार का दावा है कि राज्य को अब तक दो लाख छह हजार मीट्रिक टन खाद उपलब्ध हो चुकी है।

डीएपी के लिए हरियाणा ने केंद्र को एक महीने में लिखे चार पत्र

  • 20 सितंबर को कृषि विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने केंद्र के उवर्रक सचिव को पत्र लिख अक्तूबर व नवंबर के दौरान राज्य को डीएपी खाद की पर्याप्त मात्र आवंटित करने को कहा।
  • 26 सितंबर को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने केंद्रीय रसायन एवं उवर्रक मंत्री को पत्र लिख डीएपी खाद की आपूर्ति सुनिश्चित करने को कहा।
  • 14 अक्तूबर को कृषि विभाग के अतिरिक्त सचिव ने पत्र लिख फिर से डीएपी खाद की पर्याप्त मात्रा आवंटित करने की मांग की।
  • 20 अक्तूबर को मुख्यमंत्री सैनी ने केंद्रीय रसायन एवं उवर्रक मंत्री को फिर पत्र लिखा और कहा कि अक्तूबर व नवंबर माह के लिए आवंटित डीएपी खाद की पूर्ण आपूर्ति की जाए।
  • तीन कारण जिसकी कारण हुई कमी-

  • 1. कृषि विभाग के पूर्व महानिदेशक व रिटायर्ड आईएएस हरदीप सिंह ने बताया, डीएपी खाद संकट के तीन बड़े कारण हैं। पिछले दो दशक से किसानों ने अपनी खेती करने के तरीकों में बदलाव किया है। पहले किसान डीएपी की जगह सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी ) का इस्तेमाल करते थे। इसमें यूरिया में भी मिलानी पड़ती है। डीएपी के मुकाबले में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है, जबकि डीएपी लाए और डाल दिया। इसलिए किसानों का झुकाव डीएपी की ओर चला गया। वहीं, एसएसपी भी यही काम करता है। सरसों के किसान भी डीएपी का इस्तेमाल करते हैं, जबकि यदि वह सल्फर का इस्तेमाल करें तो उनके लिए यह ज्यादा फायदेमंद होता है।
  • 2. दूसरा बड़ा कारण यह है इस बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी कीमतों का बढ़ना। रूस व यूक्रेन युद्ध भी एक इसका बड़ा कारण हैं। मगर केंद्र की ओर से कंपनियों की ओर से उतनी सब्सिडी नहीं दी गई। इसकी वजह से आयात प्रभावित हुआ है।
    3. किसान कितनी मात्रा में खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं, इसकी निगरानी के साथ रिकॉर्ड होना चाहिए। क्योंकि किसान जरूरत से ज्यादा खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं, पड़ोसी राज्य के कई किसान भी हरियाणा से ही डीएपी ले जाते हैं।
  • हरियाणा में रबी मौसम में खाद की कोई कमी नहीं है। केंद्र सरकार के साथ बेहतर समन्वय होने के कारण पिछले साल के मुकाबले इस बार डीएपी की उपलब्धता ज्यादा रही है। अब तक दो लाख छह हजार मीट्रिक टन खाद उपलब्ध कराया जा चुका है। – श्याम सिंह राणा, कृषि मंत्री हरियाणा