श्रीराम बताते हैं कि धर्मेंद्र के साथ उनका रिश्ता करीब पंद्रह साल पुराना था। इसकी शुरुआत साल 2007 में फिल्म ‘जॉनी गद्दार’ से हुई थी। पढ़िए डायरेक्टर के ही शब्दों में धर्मेंद्र के साथ कैसा था उनका रिश्ता…
‘मेरा और धर्मेंद्र जी का रिश्ता करीब 15 साल का था। ‘जॉनी गद्दार’ के वक्त भी वो मुझे बहुत प्यार देते थे, लेकिन ‘इक्कीस’ तक आते-आते उस प्यार में एक अलग तरह का अपनापन जुड़ गया था। ‘जॉनी गद्दार’ उनकी पसंदीदा फिल्मों में से एक थी। वो खुद कहते थे कि इतने वर्षों बाद भी अगर किसी फिल्म ने उन्हें भीतर से संतुष्टि दी तो वह ‘जॉनी गद्दार’ ही है। लेकिन ‘इक्कीस’ में उनका किरदार पूरी कहानी के केंद्र में है। शायद इसी वजह से इस बार वह पहले से कहीं ज्यादा जुड़े हुए थे- अभिनय के लिए, अपने किरदार के लिए और सिनेमा के लिए।’
कहानी सुनते हुए वो बीच में अपनी राय रखते थे
‘एक बार उन्होंने मुझसे कहा था कि मैं हॉलीवुड फिल्म ‘ब्रिजेस ऑफ मैडिसन काउंटी’ की रीमेक बनाऊं और उन्हें उसमें कास्ट करूं। उन्हें वह कहानी बहुत पसंद थी लेकिन मैं जानता हूं कि मैं रीमेक बनाने वाला निर्देशक नहीं हूं। फिर जब ‘इक्कीस’ की कहानी मेरे पास आई, तो सबसे पहले मैंने उन्हें ही सुनाई। कहानी सुनते हुए वो बीच-बीच में अपनी राय रखते थे। कहीं किसी भावना पर रुकते थे, कहीं किसी दृश्य को और विस्तार देने की बात करते थे। कहानी खत्म होने के बाद उन्होंने सिर्फ इतना कहा था कि इस फिल्म को भूलना मत।’
कोविड में भी फिल्म से नहीं टूटा उनका रिश्ता
‘इक्कीस’ की कहानी मैंने उन्हें करीब पांच से छह साल पहले सुनाई थी। इसके बाद कोविड आ गया और फिल्म का काम रुक गया। शूटिंग आगे नहीं बढ़ पा रही थी। लेकिन धर्मेंद्र जी उस फिल्म को लगातार याद करते रहे। मैं ‘मेरी क्रिसमस’ में व्यस्त था, लेकिन सुबह-सुबह उनके फोन आ जाते थे। वही परिचित आवाज और वही सवाल कि आप वो फिल्म अब भी बना रहे हो न ? और मेरे साथ ही बना रहे हो न? उस सवाल में सिर्फ काम की चिंता नहीं होती थी। उसमें यह डर भी होता था कि कहीं वह कहानी उनसे छूट न जाए। मैंने उनसे वादा किया था कि जैसे ही हालात ठीक होंगे, हम शूटिंग शुरू करेंगे। अक्टूबर 2023 में जब हम आखिरकार सेट पर पहुंचे, तो उनके चेहरे पर साफ संतोष दिखाई दिया कि फिल्म अब आगे बढ़ रही है।’
पहले सुनते थे, फिर अपने भीतर गढ़ते थे हर सीन
‘सेट पर वो सिर्फ अपने सीन तक सीमित नहीं रहते थे। पहले पूरे ध्यान से सबके डायलॉग सुनते थे। फिर अपने किरदार में छोटे-छोटे बदलाव करते थे। कई बार अपने और सामने वाले कलाकार दोनों के डायलॉग उर्दू में दोबारा लिखते थे, ताकि जज़्बात और गहराई से सामने आ सकें। खुद से बातचीत करते हुए सीन तैयार करते थे। मैं उन्हें देखता रहता था और महसूस करता था कि इतनी उम्र के बाद भी वो अभिनय को एक सीखने की प्रक्रिया की तरह ही लेते थे, आदत की तरह नहीं।’
87 की उम्र में भी वही सक्रियता
‘फिल्म ‘इक्कीस’ के वक्त उनकी उम्र करीब 87 साल थी। शरीर कभी-कभी थक जाता था। चाल में थोड़ा धीमापन भी आ जाता था, लेकिन जैसे ही कैमरा ऑन होता था वो तुरंत तैयार हो जाते थे। आंखों में ध्यान और आवाज में मजबूती आ जाती थी। वह अक्सर कहते थे कि कैमरा मुझसे प्यार करता है और मैं कैमरे से। यह उनके पूरे अभिनय जीवन का सार था।’
इतने बड़े स्टार, लेकिन कभी रीटेक की जिद नहीं
‘इतने लंबे करियर के बावजूद मैंने उन्हें कभी रीटेक की जिद करते नहीं देखा। वो मुझ पर पूरा भरोसा रखते थे। अगर कोई और सुझाव देता था, तो मुस्कुराकर कहते थे कि तुम्हारा हिसाब किताब जो सही समझे वही करो। मेरे लिए वह केवल अभिनेता नहीं थे, बल्कि भरोसे की एक बड़ी जिम्मेदारी थे।’
तीस से पैंतीस दिन की शूटिंग, आखिरी फिल्म तक वही मेहनत
‘उन्होंने ‘इक्कीस’ के लिए करीब तीस से पैंतीस दिन शूटिंग की। उनका रोल छोटा नहीं था। वो पूरी कहानी का अहम हिस्सा थे। वो हर दिन सेट पर उसी अनुशासन और तैयारी के साथ आते थे जैसे किसी भी गंभीर कलाकार को आना चाहिए।’
सेट पर किस्से, कविताएं और लिखने का शौक
‘जब वो शूट नहीं कर रहे होते थे, तब सेट पर अपने पुराने किस्से सुनाते थे। अपने पुराने दिनों की बातें करते थे। कभी-कभी कविता भी सुना देते थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्हें लिखने का भी शौक था। उनकी एक कविता को हमने ‘इक्कीस’ में शामिल भी किया। यह उनके व्यक्तित्व का एक शांत पक्ष था।’
अगस्त्य के साथ उनका रिश्ता बिल्कुल दादा-पोते जैसा
‘अगस्त्य के साथ उनका रिश्ता बिल्कुल दादा और पोते जैसा हो गया था। वो हर वक्त उसका ख्याल रखते थे। कभी पानी पिलवाते थे, कभी सीन के बाद अपने पास बैठा लेते थे। शूट के दौरान अगर अगस्त्य किसी सीन को लेकर उलझन में होता तो धर्मेंद्र जी उसे अपने पास बुलाकर सीन समझाते थे और उसे सहज महसूस कराते थे। सेट पर वह उसकी तैयारी और थकान दोनों पर बराबर ध्यान रखते थे।’
एक ऐसा जाना जो हमेशा याद रहेगा
‘सबसे भारी बात मेरे लिए यह रही कि वह अपनी आखिरी फिल्म का पूरा फाइनल कट बड़े पर्दे पर नहीं देख पाए। यह बात मेरे मन में हमेशा रहेगी। धर्मेंद्र जी का जाना सिर्फ सिनेमा का नुकसान नहीं है। यह मेरे लिए एक निजी नुकसान है। वह जितने बड़े अभिनेता थे, उससे कहीं बड़े इंसान थे। और इसी वजह से वह हमेशा याद किए जाते रहेंगे।’















































