हमारे खून में एक स्व-उपचार करने का गुण होता है, जो चोट लगने पर खून के थक्के बनाकर उसे बहने से रोकता है। यह गुण हमें मामूली चोट लगने पर खून बहने से बचाता है। हालांकि, अगर इस गुण को नियंत्रित नहीं किया जाता है, तो रक्त वाहिकाओं के अंदर खून जम सकता है जिसे थ्रोम्बोसिस की स्थिति कहते हैं। यह स्थिति गर्भावस्था में भी देखी जा सकती है। गर्भावस्था में न केवल हमारे शरीर में हार्मोनल परिवर्तन होते हैं, बल्कि प्लेसेंटा से होकर बहने वाले रक्त की मात्रा भी थोड़ी धीमी हो जाती है और ऊतकों के क्षतिग्रस्त होने की संभावना रहती है, जिससे रोगी की रक्त वाहिकाओं के अंदर थ्रोम्बोसिस हो सकता है।
कैसे करते हैं मैनेज-
नेशनल हेल्थ सर्विस के अनुसार यदि आपको गर्भावस्था के दौरान DVT हो जाता है, तो आपको रक्त के थक्के को बढ़ने से रोकने के लिए दवा के इंजेक्शन की जरूरत पड़ सकती है। हेपरिन नामक दवा आपके गर्भस्थ शिशु को प्रभावित नहीं करती है। आपको आमतौर पर गर्भावस्था के बाकी समय और अपने बच्चे के जन्म के कम से कम 6 सप्ताह बाद तक इंजेक्शन लगवाने की आवश्यकता होगी।
और क्या कर सकते हैं-
दवा के अलावा और भी कई तरीके हैं जिनकी मदद से इस कंडीशन को कंट्रोल किया जा सकता है, जैसे कि आपकी दाई या डॉक्टर आपको गर्भावस्था में व्यायाम के बारे में सलाह दे सकते हैं। अपने पैरों में रक्त संचार में बढ़ाने के लिए कंप्रेशन स्टॉकिंग्स पहनें।
इनसे बढ़ता है खतरा –
गर्भनिरोधक गोलियों और हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी जैसी हार्मोनल थेरेपी से थ्रोम्बोसिस का जोखिम बढ़ सकता है। साथ ही, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और अत्यधिक वजन वाली महिलाओं को थ्रोम्बोसिस होने का खतरा रहता है, और इसलिए उन्हें भी इन दवाओं से बचना चाहिए। यदि वह इन दवाओं पर हैं, तो उन्हें अंतर्निहित जोखिमों के बारे में पता होना चाहिए।
इलाज न किया जाए तो-
अगर इलाज न कराया जाए तो नस में मौजूद खून का थक्का टूटकर दिल तक पहुंच सकता है। इससे उसके फेफड़ों में रक्त के प्रवाह में रुकावट के कारण अचानक मौत हो सकती है। इसी तरह, उसके मस्तिष्क की नसों में भी खून का थक्का जम सकता है। इसे सेंट्रल वेनस थ्रोम्बोसिस (CVT) के नाम से जाना जाता है। इससे सिर में तेज दर्द होता है और उससे ऐंठन भी हो सकती है। इसका पता एमआरआई से चलता है और अगर बिना देरी किए और विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में किया जाए तो आमतौर पर उपचार सफल होता है।