अत्यधिक बारिश और पिंक बॉलवर्म के हमले के कारण इस बार कपास की पैदावार पर व्यापक असर पड़ा है. कपास की उपज काफी कम रह गई है. एक तरफ पैदावार में आई कमी किसानों के लिए चिंता का विषय है तो दूसरी तरफ बढ़ी हुई कीमतों के कारण उनके पास खुश होने के मौके भी हैं. दरअसल, कम पैदावार होने की वजह से कपास की कीमत काफी बढ़ गई है. वर्तमान में कपास की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य से 60 प्रतिशत अधिक के भाव पर बिक रही है. सरकार ने कपास की एमएसपी 5925 रुपए तय की है.
कम पैदावार और कपास खरीद में निजी खिलाड़ियों के प्रवेश ने स्थिति को किसानों के पक्ष में ला दिया है. हरियाणा के सिरसा जिले में व्यापारी 9700 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर कपास खरीद रहे हैं. किसानों को उम्मीद है कि कीमतों में अभी और बढ़ोतरी होगी. उनका कहना है कि बारिश और पिंक बॉलवर्म के हमले से हुए नुकसान को हम बढ़ी हुई कीमतों से कम कर रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बढ़ी हुई है कपास की कीमत
कॉटन कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) के एक अधिकारी मोहित शर्मा ने द ट्रिब्यून से कहा कि पिछले साल सितंबर में बेमौसम बारिश और उसके पबाद पिंक बॉलवर्म के हमले ने न केवल उपज को प्रभावित किया है बल्कि फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित हुई है.
उन्होंने कहा कि कम पैदावार के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतें भी किसानों के साथ हैं. वर्तमान में विदेशी बाजारों में कपास का भाव काफी अधिक है, जिसका असर स्थानीय बाजारों पर पड़ रहा है. मोहित शर्मा ने कहा कि सीसीआई ने इस बार अभी तक कपास की खरीद नहीं की है. हालांकि हम इसके लिए तयैार थे.
50 से 70 प्रतिशत फसल हो गई थी बर्बाद
सीसीआई के अधिकारी ने बताया कि अभी कपास की कीमत सरकार द्वारा तय एमएसपी से काफी अधिक है. यहीं कारण है कि किसान हमें पैदावार की बिक्री नहीं कर रहे हैं. उन्होंने जानकारी दी कि फसल की गुणवत्ता के आधार पर कपास 9000 से 9700 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर बिक रहा है.
बाजार विशेषज्ञों ने कहा कि फसल का मौसम लगभग खत्म हो चुका है. पिछले साल 22.76 लाख क्विंटल की तुलना में सिरसा जिले के विभिन्न बाजारों में अब तक केवल 16.36 लाख क्विंटल कपास की आवक हुई है. एक कृषि अधिकारी ने कहा कि हरियाणा में इस सीजन में लगभग 14.78 लाख एकड़ में कपास की खेती हुई, जिसमें सिरसा में 5 लाख एकड़ जमीन शामिल है. एक गिरदावरी रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि बारिश और पिंक बॉलवर्म के हमले के कारण लगभग 50 से 70 प्रतिशत फसल बर्बाद हो गई थी.