हरियाणा और पंजाब के लिए पराली जलाने की घटनाएं एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी हैं। लाख कोशिशों के बावजूद भी पराली जलाने की घटनाओं में अपेक्षित कमी नहीं आई है। दोनों प्रदेशों के कई जिलों में तो पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष अधिक संख्या में पराली जलाने की घटनाएं सामने आई। लेकिन इस समस्या का हल केवल सरकार के हाथ में नहीं है बल्कि किसानों को भी इसमें आगे बढ़कर सरकार का सहयोग करना चाहिए। अगर सरकार और किसान मिलकर काम करेंगे तो पराली प्रबंधन व इसे जलाने से होने वाले प्रदूषण दोनों से आसानी से निजात मिल सकती है।
इस दिशा में लुधियाना के हरिदरजीत सिंह गिल ने पराली प्रबंधन क्षेत्र में अन्य किसानों के लिए अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। दोनों प्रदेशों के किसान जहां पराली को लेकर सरकार को कोसने में समय और कर्जा लगा रहे हैं, वहीं गिल ने पराली प्रबंधन को एक लाभ के व्यवसाय में तब्दील कर दिया है। उन्होंने सिर्फ पराली बेचकर करीब 32 लाख रुपए की कमाई की है।
पेपर मिल को बेचते हैं 185 रुपए प्रति क्विंटल
स्नातक से किसान बने गिल ने 5 लाख की रकम से एक पुराना स्क्वायर बेलर और रैक खरीदा। एस मशीन के माध्यम से उन्होंने 17 हजार क्विंटल पराली(फसल अवशेष) को संघन गाठों में बदल दिया जिसे उन्होंने पेपर मिल को 185 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बेच दिया। इस तरह उन्होंने अकेले पराली से 31.45 लाख रुपए की कमाई की। अगर सभी खर्चे निकाल दिए जाएं जिसमें बेलर दो ट्राली की कीमत शामिल है तो उन्होंने शुद्ध 20.45 लाख का मुनाफा कमाया है।
गर्व से कहा- पिछले 7 साल से नहीं जलाई पराली
फिलहाल अपनी कमाई और पराली प्रबंधन क्षमता बढ़ाने के लिए उन्होंने दो रैंक के साथ एक राऊंड बेलर और खरीद लिया है, जिनकी कीमत 40 लाख रुपए हैं। इसके अलावा 17 लाख रुपए का एक रैक के साथ एक स्क्वायर बेलर भी खरीदा है। 500 टन राऊंड बेल और 400 टन स्क्वायर बेल उत्पादन करने का लक्ष्य गिल ने निर्धारित किया है। इससे अलग वह आमदनी बढ़ाने के अन्य सोतों पर भी काम कर रहे हैं। गिल ने न केवल अपने पराली प्रबंधन से कमाई की बल्कि पर्यावरण को स्वच्छ रखने में भी सहयोग किया है। गिल गर्व से कहते हैं कि पिछले 7 वर्षों में उन्होंने एक बार भी पराली नहीं जलाई है। उनसे प्रभावित होकर अन्य किसान भी पराली प्रबंधन में जुट गए हैं।