भारतीय किसान यूनियन (BKU) के नेता राकेश टिकैत ने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर किसानों से अपील की है कि राजनीतिक दल सभी को जाति, धर्म और जिन्ना के मुद्दे में उलझाएंगे लेकिन उन्हें खेती के मुद्दे पर डटे रहना चाहिए. अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में चुनाव होने हैं. राकेश टिकैत का यह बयान तब आया है, जब उत्तर प्रदेश में पिछले कई दिनों से मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर राजनीतिक दलों के बीच बयानबाजी हो रही है.
टिकैत ने शनिवार को ट्विटर पर लिखा, “अब चुनावजीवी घर-घर आएंगे, आपको जाति, धर्म और जिन्ना में उलझाएंगे. हमें किसान-मजदूर ही बने रहना है, और खेती-किसानी मुद्दों पर ही डटे रहना है.” बीकेयू किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) का हिस्सा है और नवंबर 2020 से दिल्ली के तीन बॉर्डर सिंघु, टीकरी और गाजियाबाद में प्रदर्शन में शामिल है.
इससे पहले शुक्रवार को भी उन्होंने एक ट्वीट में कहा था कि इस बार “गूंगी-बहरी सरकार” को जगाने और अपनी बात मनवाने के लिए किसान 29 नवंबर की ट्रैक्टरों से संसद भवन जाएंगे. केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के प्रदर्शन का एक साल पूरा होने वाला है. टिकैत ने हाल ही में कहा था, जब तक तीनों काले कानूनों की वापसी और एमएसपी पर गारंटी कानून नहीं बनता तब तक आंदोलन देश भर में जारी रहेगा. बिल वापसी ही घर वापसी है. यह आंदोलन जल, जंगल और जमीन को बचाने का आंदोलन है.”
29 नवंबर से संसद तक ट्रैक्टर मार्च की घोषणा
देश के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान, पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शनकारी केन्द्र के तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. किसानों को भय है कि इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली खत्म हो जाएगी. हालांकि, सरकार इन कानूनों को प्रमुख कृषि सुधारों के रूप में पेश कर रही है. दोनों पक्षों के बीच 11 दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन सभी बेनतीजा रहीं.
संयुक्त किसान मोर्चा ने हाल ही में घोषणा की थी कि तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन का एक साल पूरे होने के मौके पर 500 किसान हर दिन 29 नवंबर से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र के दौरान संसद तक शांतिपूर्ण ट्रैक्टर मार्च में हिस्सा लेंगे. इसमें कहा गया कि यह केंद्र सरकार पर ‘दबाव बढ़ाने’ के लिए और ‘उसे उन मांगों को स्वीकार करने के लिए मजबूर करने के लिए किया जाएगा, जिनके लिए देशभर के किसानों ने एक ऐतिहासिक संघर्ष शुरू किया है.