किसानों को चुनावी सीजन में कर्जमाफी की आस, जानिए किन राज्यों में सबसे ज्यादा कृषि कर्ज?

Parmod Kumar

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अगले साल उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए किसानों ने कर्जमाफी की उम्मीद पाल रखी है. साल 2014 से चल रही बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने अब तक कोई कर्जमाफी नहीं की है. लेकिन 12 राज्यों की सरकारें अपने बलबूते पर कर्जमाफी पर का काम किया. इसके बावजूद 31 मार्च तक किसानों पर 16.80 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है. किसान नेता इस कर्ज से मुक्ति की मांग उठा रहे हैं. आईए उन दस राज्यों को जानते हैं जिनके किसानों पर सबसे ज्यादा कृषि कर्ज है.

सबसे ज्यादा कृषि कर्ज वाले सूबों में उत्तर प्रदेश का तीसरा नंबर है. यहां के किसानों पर डेढ़ लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है. जबकि पंजाब 71,306 करोड़ के साथ 12वें नंबर पर है. इन दोनों सूबों में 2022 में विधानसभा चुनाव हैं. ऐसे में कृषि क्षेत्र के कुछ जानकारों का कहना है कि नए कृषि कानून से नाराज किसानों को रिझाने के लिए इनमें बीजेपी और कांग्रेस कर्जमाफी का दांव चल सकते हैं. हालांकि, केंद्र सरकार कर्जमाफी के विरोध में रही है. किसान शक्ति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि किसानों को यह उम्मीद है कि चुनाव के ही बहाने सही लेकिन कर्ज माफ किया जाएगा.

Farmers Loan Waiver

यूपी में पीएम ने किया था कर्जमाफी का वादा

हालांकि, जब पार्टी हित की बात आती है तो मसला अलग हो जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2017 के यूपी चुनाव प्रचार के दौरान वोटरों से वादा किया था कि राज्य में बीजेपी (BJP) सरकार बनते ही वह सबसे पहले छोटे किसानों के कर्ज माफ करेंगे. इस अपील का असर चुनाव नतीजों के रूप में नजर आया. यूपी में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला. सरकार बनने के बाद योगी आदित्यनाथ ने 36,000 करोड़ रुपये की कर्जमाफी का एलान किया.

राज्य अपने संसाधनों से माफ करें किसानों का कर्ज: केंद्र

इस बार भी केंद्र सरकार का साफ कहना है कि उसके पास कर्जमाफी का कोई प्रस्ताव नहीं है. जबकि, फसल खराब होने, सूखे और कर्ज को केंद्र सरकार किसानों की आत्‍महत्‍या (Farmer suicide) का कारण मानती है. लेकिन वो कर्जमाफी के लिए कोई सहयोग नहीं दे रही. केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर तो सदन में भी यह बात कह चुके हैं. केंद्र सरकार का स्पष्ट कहना है कि वो राज्यों को किसानों के कर्ज माफ करने के लिए फाइनेंस उपलब्ध नहीं कराएगी. जो राज्य किसान कर्ज माफ करना चाहते हैं उन्हें इसके लिए खुद संसाधन जुटाने होंगे.

कृषि कर्ज वाले 10 बड़े राज्य

राज्यकर्ज/करोड़
तमिलनाडु189623.56
आंध्र प्रदेश169322.96
उत्तर प्रदेश155743.87
महाराष्ट्र153698.32
कर्नाटक143365.63
राजस्थान120979.21
मध्य प्रदेश100472.33
गुजरात90695.25
केरल84386.53
तेलंगाना84005.43
Source: NABARD, 31 मार्च 2021 तक/कुल कर्ज: 1680366.77 करोड़ रुपये

कॉरपोरेट बनाम किसान: कर्जमाफी का दोहरा रवैया

कृषि अर्थशास्त्री देविंदर शर्मा का कहना है कि अगर किसानों का कर्ज माफ करना होता है तो केंद्र सरकार राज्य पर टाल देती है कि जिस राज्य का किसान है वो सरकार माफ करेगी. लेकिन जब कॉरपोरेट का कर्ज (Corporate Loan) माफ करने की बात आती है तो खुद ही उसे माफ कर देती है. जबकि दोनों लोन बैंक से ही लेते हैं. अगर महाराष्ट्र या बंगलूरू में स्थित किसी कंपनी का लोन केंद्र माफ कर सकता है तो फिर किसानों का कर्ज महाराष्ट्र, कर्नाटक की राज्य सरकार क्यों माफ करें. दरअसल, ऐसा जान बूझकर कहा जाता है, क्योंकि राज्यों के पास संसाधनों की कमी है.

कृषि विशेषज्ञ शर्मा कहते हैं साल 2013 से लेकर अब तक 10 लाख करोड़ रुपये का कॉरपोरेट टैक्स माफ किया गया है. दूसरी ओर पिछले पांच साल में सिर्फ 2 लाख करोड़ का कृषि कर्ज माफ हुआ है, जबकि किसानों पर 16 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है. कॉरपोरेट और कृषि कर्ज (Agri Loan) में एकरूपता होनी चाहिए. या तो कारपोरेट टैक्स माफी का जिम्मा भी राज्यों को दिया जाए. जिस भी राज्य में कंपनी का हेडक्वार्टर हो वहां की सरकार माफ करे या फिर कृषि कर्ज भी कॉरपोरेट की तरह केंद्र सरकार ही माफ करे.

…तो फिर क्यों न की जाए कृषि कर्जमाफी

शर्मा के मुताबिक, “देश के आर्थिक सलाहकार कहते हैं कि कॉरपोरेट का लोन माफ करने से इकोनॉमिक ग्रोथ (Economic Growth) होगी, दूसरी ओर रिजर्व बैंक के गवर्नर बोलते हैं कि किसानों का कर्ज माफ करने से वित्तीय संतुलन खराब हो जाएगा. ये दोहरी मानसिकता क्यों? किसान वाकई कर्जमाफी के हकदार हैं, क्योंकि साल 2000 से 2016-17 के बीच भारत के अन्नदाता को उनकी फसलों का उचित दाम न मिलने के कारण करीब 45 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. जबकि यह रकम तो अंतरराष्ट्रीय दाम की गणना पर आधारित है, जहां किसानों को 40-40 परसेंट तक सब्सिडी मिलती है. ऐसे में 16.80 लाख करोड़ रुपये की कर्जमाफी क्यों न हो.”