देश में आम दिनों से लेकर पूजापाठ के लिए सिंघाड़ा का इस्तेमाल होने लगा है. अपने देश में यह आमतौर पर खाने योग्य अखरोट के रूप में प्रयोग किया जाता है. अखरोट की गिरी में बड़ी मात्रा में प्रोटीन 20% तक, स्टार्च 52%, टैनिन 9.4%, वसा 1% तक, चीनी 3%, खनीज आदि होते हैं. Ca, K, Fe और Zn के साथ-साथ फाइबर और विटामिन बी का भी एक अच्छा स्रोत है. साथ ही इसमें कई उपचारात्मक और पूरक गुण भी हैं.यानि औषधीय गुण भी है. सिंघाड़ा अधिक मुनाफे वाली खेती मानी जाने लगी है. किसान इसका बरसात के मौसम में लाभ उठा सकते हैं. कृषि वैज्ञानिक के अनुसार जिन किसानों के पास तालाब है और उन्होंने जून में सिंघाड़े की पौध तैयार कर ली है. उपचारित कर तालाब में बेल डाल दें. 25 अगस्त तक का समय है. 60 दिन बाद सिंघाड़े तैयार होने लगते हैं. सितंबर से जनवरी तक फल तोड़ा जाता है. इस फसल में बीमारियां और कीट भी अधिक लगते हैं.
सिंघाड़े से मिलते हैं कई फायदे
डॉक्टर राजेंद्र कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डाक्टर एस के सिंह ने बताया कि सिंघाड़े को आमतौर पर ठंडे भोजन के रूप में जाना जाता है. गर्मी के मौसम की गर्मी को मात देने के लिए उत्कृष्ट हैं.
इसके अलावा, पानी के साथ सिंघाडा का पाउडर का मिश्रण खांसी में राहत के रूप में प्रयोग किया जाता है. अगर आपको पेशाब के दौरान दर्द का अनुभव होता है, तो एक कप पानी सिंघाडा का मीठा सूप पीने से आपको बहुत फायदा हो सकता है.
इसका उपयोग पीलिया को भी शानदार तरीके से ठीक करने के लिए किया जाता है और सूखा और सिंघाडा के आटा में डिटॉक्सिफाइंग गुण भी होते हैं.
डाक्टर सिंह के मुताबिक, सिंघाडा के आटा को रोटियां बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि ये ऊर्जा का अच्छा स्रोत हैं खासकर व्रत के दिनों में व्रती इसका इस्तेमाल करते हैं .
यह याद रखना चाहिए कि यह सुरक्षात्मक एंटीऑक्सीडेंट में कम है. ये बेहद ठंडे और रेचक प्रकृति के होते हैं और इन्हें अधिक मात्रा में नहीं खाना चाहिए अन्यथा इससे पेट में गैस की समस्या हो सकती है और सूजन हो सकती है.
सिंघाडा का फल जो अच्छी तरह से सूख जाते हैं उन्हें सरोटे या वाटर चेस्टनट छीलने की मशीन द्वारा छील दिया जाता है. इसके बाद इसे एक से दो दिनों तक धूप में सुखाकर मोटी पॉलीथिन की थैलियों में पैक कर दिया जाता है.
सिंघाडा की गरी बनाने के लिए पूरी तरह से पके फलों को सुखाया जाता है. फलों को पक्के खलिहान या पॉलिथीन में सुखाना चाहिए. फलों को लगभग 15 दिनों तक सुखाया जाता है और 2 से 4 दिनों के अंतराल पर फलों को उल्टा कर दिया जाता है ताकि फल पूरी तरह से सूख सकें.
जाए फिर किसान बाजार की मांग के मुताबिक संबंधित स्थान ले जाकर बेच सकते हैं क्योंकि इसमें किसान को लागत कम लगती है . प्राकृतिक रुप से बने जल क्षेत्र में इसकी खेती होती है. अब इसकी बढ़ती मांग के कारण किसान सामान्य खेत में भी कम पानी में इसे उगा रहे हैं अब अच्छी कमाई कर सकते हैं.
बिना कांटों वाली चेस्टनट की जगह बिना कांटों वाली किस्मों को खेती के लिए चुनें, ये किस्में अधिक उत्पादन देने के साथ-साथ इनके टुकड़ों का आकार भी बड़ा होता है, और इसे आसानी से खेतों में काटा जा सकता है.