पिछले लगभग दस महीने से किसान आंदोलन को धार दे रही कांग्रेस इन दिनों किसानों से ही परेशान हैं. गन्ने के दाम में वृद्धि की मांग को लेकर कांग्रेस शासित पंजाब में किसानों ने आंदोलन शुरू कर दिया है. रेलवे ट्रैक और हाइवे जाम किया जा रहा है, ताकि उनकी मांगें पूरी की जाएं. हालांकि, अब तक कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने किसानों की मांगों को नहीं माना है. हालात ये है कि जो कांग्रेस अब तक यूपी में इसके दाम पर सवाल उठा रही थी वो पंजाब के मामले को लेकर खुद कटघरे में खड़ी हो गई है.
राष्ट्रीय किसान प्रोग्रेसिव एसोसिएशन (RKPA) के अध्यक्ष बिनोद आनंद का कहना है कि गन्ने के दाम (Sugarcane Price) ने कांग्रेस के ‘किसान प्रेम’ का पर्दाफाश कर दिया है. जो लोग कृषि उपज के दाम को लेकर इतने संजीदा थे वो पंजाब में गन्ने के दाम के मामले में क्यों चुप हैं? कांग्रेस नेतृत्व को सामने आकर बताना चाहिए वो इस मामले पर क्या चाहता है.
पंजाब में कितना है दाम?
दोआबा किसान संघर्ष कमेटी के नेताओं का कहना है कि हरियाणा में गन्ने की कीमत 350 रुपये प्रति क्विंटल है. जबकि पंजाब में पिछले पांच साल से कीमत 310 रुपये प्रति क्विंटल ही है. आंदोलन को देखते हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने 15 प्रति क्विंटल की वृद्धि का एलान जरूर किया है, लेकिन नाराज किसान इसे अपर्याप्त बता रहे हैं. उधर, उत्तर प्रदेश में 325 रुपये प्रति क्विंटल का दाम है. इसमें वृद्धि को लेकर किसान नेता राकेश टिकैत आंदोलन करने की बात कर रहे हैं.
देश भर में 400 रुपये क्विंटल हो दाम: सिंह
किसान शक्ति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि गन्ने की उत्पादन लागत (Production cost) इस वक्त देश में औसतन 350 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है. इस लिहाज से कम से कम 400 रुपये प्रति क्विंटल का रेट सभी किसानों को मिलना चाहिए. चाहे किसी की भी सरकार हो. पंजाब में गन्ना किसानों के आंदोलन को हमारा समर्थन है.
गन्ना किसानों के अकाउंट में भेजा जाए पैसा
राष्ट्रीय किसान प्रोग्रेसिव एसोसिएशन के अध्यक्ष बिनोद आनंद का कहना है कि क्वालिटी के हिसाब से देश भर में गन्ने का फ्लैट रेट दिया जाना चाहिए. किसानों को दिए जाने वाले सारे फंड को उनके बैंक अकाउंट (Bank Account) में ट्रांसफर कर देना चाहिए. इससे मिल मालिकों को कोई मतलब न हो. सरकार के पास सभी रिकॉर्ड है, उसे इस काम में कोई दिक्कत भी नहीं आएगी. लेकिन दुर्भाग्य से अभी किसानों के नाम पर चीनी मिल मालिकों को पैसा दिया जाता है. सरकार जो पैसा किसानों के नाम पर चीनी मिलों को देती है वो किसानों तक वापस नहीं आता.