लाठीचार्ज के विरोध में करनाल के घरौंडा अनाज मंडी में जुटे किसान

Parmod Kumar

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कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के केंद्र में एक बार फिर हरियाणा आ गया है. इस आंदोलन के नौ महीने पूरे हो चुके हैं. लेकिन हरियाणा में हंगामा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. शुरू से ही यहां सरकार और किसान दोनों एक दूसरे के खिलाफ आक्रामक तेवर अपनाए हुए हैं. आंदोलन तो यूपी और पंजाब में भी हुए हैं लेकिन हरियाणा में मनोहरलाल सरकार अब तक इस पर काबू करने में सफल नहीं हो पाई है. सरकार और उसके नुमाइंदे किसानों को अपनी बात समझाने में नाकाम साबित हुए हैं.

सीएम सिटी करनाल में 28 अगस्त शनिवार को किसानों पर हुए लाठीचार्ज और एसडीएम के वायरल वीडियो के बाद सीएम मनोहरलाल बैकफुट पर हैं. वो आंकड़ों की बाजीगरी से डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. उधर, इस घटना के बाद किसान संगठनों ने आंदोलन में और धार देने का फैसला लिया है. इससे सरकार की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. दरअसल, हरियाणा में किसानों पर लाठीचार्ज की यह कोई पहली घटना नहीं है. यहां बार-बार ऐसा हो रहा है. वो भी तब जब इस सरकार में किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी देवी लाल के प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला बराबर के हिस्सेदार हैं.

सरकार ले रही है किसानों से पंगा: पुष्पेंद्र सिंह

किसान शक्ति संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष पुष्पेंद्र सिंह का कहना है कि जब से किसान आंदोलन (kisan andolan) शुरू हुआ है तभी से मनोहरलाल खट्टर की सरकार किसानों का दमन करने पर तुली हुई है. किसानों पर इतनी ज्यादती तो किसी भी सरकार ने नहीं की. जब किसान पंजाब से शांतिपूर्वक दिल्ली आ रहे थे, तब खट्टर सरकार ने ही सड़कें खुदवाईं, भयंकर ठंड के मौसम में बुजुर्ग किसानों पर भी वाटर कैनन का इस्तेमाल किया और रोड ब्लॉक कराए. शुरू से ही हरियाणा सरकार किसानों से पंगा ले रही है. सीएम को यह समझना होगा कि किसान प्यार से तो मान सकते हैं दमन से नहीं.

क्या कहते हैं खट्टर और हुड्डा

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर का कहना है कि किसान आंदोलन (Farmers Protest) करने वाले और कानून हाथ में लेने वाले किसान नहीं बल्कि राजनीति से प्रेरित लोग हैं. हरियाणा के किसान तो खुशी-खुशी अपने खेतों में काम कर रहे हैं. यह पंजाब (Punjab) के किसान हैं जो टिकरी और सिंघू बॉर्डर पर बैठे हैं.

जबकि पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि करनाल में किसानों पर हुआ लाठीचार्ज न सिर्फ अलोकतांत्रिक है बल्कि अमानवीय भी है. हम इसकी निंदा करते हैं. लोकतंत्र में सभी को अपना विरोध दर्ज करने का संवैधानिक हक है. लाठी-गोली से सरकार नहीं चला करती, लोगों का दिल जीतकर सरकार चलती है.

हरियाणा सरकार को किसानों का अल्टीमेटम

लाठीचार्ज से गुस्साए किसानों ने 30 अगस्त को करनाल के घरौंडा अनाज मंडी में बैठक की. हजारों किसानों ने लाठीचार्ज पर सरकार को घेरा. किसान नेताओं ने ‘सिर फोड़ने’ वाला बयान देने वाले एसडीएम आईएएस आयुष सिन्हा को बर्खास्त कर उनके खिलाफ हत्या का केस दर्ज करने की संयुक्त रूप से मांग की.

किसान नेताओं ने कहा कि सरकार लाठीचार्ज के बाद मृतक किसान सुशील काजल के परिवार को 25 लाख रुपये का मुआवजा और सरकारी नौकरी दे. पुलिस पर हत्या का मुकदमा दर्ज हो. यही नहीं घायल किसानों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा मिले. इन मांगों को पूरा करने के लिए 6 सितंबर तक का अल्टीमेटम दिया गया है. नेताओं का कहना है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गई तो वो 7 सितंबर को करनाल में महापंचायत बुलाएंगे.

चोट से किसान की मौत नहीं: सरकार

हालांकि, सरकार बसताड़ा टोल प्लाजा पर हुए लाठीचार्ज में चोटिल होने से किसी किसान की मौत से इनकार कर रही है. करनाल के एसपी गंगा राम पुनिया ने बताया कि मृतक किसान किसी भी अस्पताल नहीं गया था. वह स्थिर हालत में अपने घर गया था. उसकी मौत रात को सोने के वक्त हुई. कुछ लोगों का कहना है कि उसकी मौत हार्ट अटैक से हुई. पुलिस द्वारा लाठीचार्ज में चोट की वजह से मौत की खबर गलत है.

एसडीएम पर कब होगी कार्रवाई?

मुख्यमंत्री मनोहरलाल उस एसडीएम का बचाव करते नजर आ रहे हैं जिसने ‘सुरक्षा तोड़ने पर किसानों के सिर फोड़ देने’ का आदेश दिया था. वो कह रहे हैं कि इसकी जांच पुलिस महानिदेशक द्वारा की जा रही है. जबकि डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला का कहना है कि संबंधित अधिकारी पर कार्रवाई जरूर होगी. एक अधिकारी द्वारा ऐसी शब्दावली का प्रयोग करना निंदनीय है. एसडीएम का व्यवहार एक आईएएस अधिकारी की ट्रेनिंग के विपरीत है.

एफआईआर की संख्या से तनाव को समझिए

हरियाणा सरकार और किसानों के बीच तनाव को आप यहां हुई एफआईआर से समझ सकते हैं. राज्य सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन के दौरान किसानों और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हरियाणा में 20 अगस्त तक 138 एफआईआर हो चुकी है. जिसमें दो किसानों के विरुद्ध राजद्रोह से संबंधित धारा 124ए के तहत भी एक्शन लिया गया है.

सरकार और किसानों में तनाव बरकरार

दरअसल, हरियाणा के किसानों को मनोहरलाल सरकार और उसके सलाहकार यह समझाने में विफल रहे हैं कि यह कानून किसानों के हित में है. हां, यहां यह जरूर हुआ है कि जब किसान आंदोलन के लिए निकले तो पुलिस ने उनकी जमकर पिटाई की.

10 सितंबर 2020 को ‘किसान बचाओ मंडी बचाओ’ रैली में कुरुक्षेत्र जा रहे किसानों (Farmers) की सरकार ने जमकर पिटाई करवाई. इसमें कई बुजुर्ग किसान भी बुरी तरह से घायल हो गए थे.

बाद में सरकार ने कृषि कानून के फायदे गिनवाए. लेकिन, किसानों की पिटाई की वजह से सरकार और आंदोलनकारियों के बीच टेंशन कम नहीं हुई. 24 दिसंबर 2020 को जींद जिले के उचाना में किसानों ने डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के आने से पहले बनाए गए हेलीपैड को फावड़े से खोद डाला. दुष्यंत चौटाला गो बैक के नारे भी लगाए.

इसके बाद 10 जनवरी 2021 को करनाल जिले के गांव कैमला में आयोजित किसान महापंचायत में किसानों ने जमकर उत्पात मचाया और सीएम को अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ा. बीते 10 जुलाई को यमुनानगर में नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों और पुलिस के बीच झड़प हुई थी.

क्यों असहज हैं बीजेपी-जेजेपी के नेता?

हरियाणा में किसान भी कम नहीं हैं. उन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ाई में इन दोनों पार्टियों के नेताओं का सामाजिक बहिष्कार कर रखा है. कई गांवों में बोर्ड लगाकर दोनों पार्टियों के नेताओं का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है.

बीजेपी-जेजेपी समर्थकों के यहां शादी न करने का एलान
हरियाणा के जींद में खेड़ा खाप ने ऐलान किया है कि उससे जुड़े लोग जिस घर में वह अपने लड़का या लड़की की शादी करेंगे, पहले उनसे यह पूछेंगे कि वह परिवार बीजेपी या जेजेपी का समर्थक तो नहीं है. अगर वह इन दोनों का समर्थक मिला तो उसके घर में रिश्ता नहीं करेंगे. कहा गया है कि जब तक तीनों कृषि कानून रद्द नहीं हो जाते और एमएसपी की गारंटी नहीं मिल जाती, तब तक यह फैसले लागू रहेंगे.

हालांकि, बीजेपी-जेजेपी नेताओं के गांवों में जाने पर प्रतिबंध लगाने और सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ हरियाणा विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया जा चुका है. अब देखना यह है कि मनोहरलाल सरकार किसानों पर सख्ती करेगी या उन्हें प्यार से समझाने-बुझाने का रास्ता अपनाएगी.