मौसम में बदलाव के कारण गेहूं की खड़ी फसल में लगने वाले कीट और बीमारियां से बचाने के लिए किसान करें ये उपाय

Parmod Kumar

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इस समय गेहूं की फसल खेत में लगी है. मौसम में लगातार बदलाव हो रहा है। कभी बारिश तो कभी शीतलहर का दौर जारी है, इसलिए मौसम में बदलाव के कारण गेहूं की खड़ी फसल में लगने वाले कीट और बीमारियां ज्यादा परेशान कर सकती हैं. किसान समय पर सही कदम उठाकर इससे निपटें नहीं तो पूरी फसल बेकार हो सकती है. इसमें एक तरह की बामारी नहीं बल्कि कई तरह की बामारियां लगती हैं. किसानों को सुझाव दिया जाता है कि अपनी फसल की नियमित निगरानी करें.

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा समस्तीपुर के कुलपति डॉक्टर रमेश चंद्र श्रीवास्तव किसानों को गेहूं की फसल को कीट और बीमारी से बचाने के लिए उपाय बता रहे हैं. उनका कहना है कि इस वक्त अगर किसान उचित प्रबंधन करते हैं तो फसल को नुकसान नहीं होगा और पैदावार में बढ़ोतरी होगी.

माहू या लाही

डॉक्टर रमेश चंद्र श्रीवास्तव बताते हैं कि माहू या लाही कीट काले, हरे, भूरे रंग के पंखयुक्त एवं पंखविहीन होते हैं. इसके शिशु एवं वयस्क पत्तियों, फूलों तथा बालियों से रस चूसते हैं, जिसके कारण फसल को काफी क्षति होती है और फसल बर्बाद हो जाती है. इस कीट के प्रकोप से बचने के लिए किसान भाई को वे सलाह देते हैं कि..

-फसल की बुआई समय पर करें.

-लेडी बर्ड विटिल की संख्या पर्याप्त होने पर कीटनाशी का व्यवहार नहीं करें.

-खेत में पीला फंदा या पीले रंग के टिन के चदरे पर चिपचिपा पदार्थ लगाकर लकड़ी के सहारे खेत में खड़ा कर दें. उड़ते लाही इसमें चिपक जाएंगे.

-थायोमेथॉक्साम 25 प्रतिशत डब्ल्यूजी का 50 ग्राम प्रति हेक्टेयर या क्विनलफोस 25 प्रतिशत ईसी का 2 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.

हरदा रोग

डॉक्टर श्रीवास्तव के मुताबिक, इस मौसम में वर्षा के बाद वायुमंडल का तापमान गिरने से इस रोग के आक्रमण एवं प्रसार बढ़ने की सम्भावना अधिक बन जाती है. गेहूं के पौधे में भूरे रंग एवं पीले रंग के धब्बे पत्तियों और तनों पर पाए जाते हैं. इस रोग के लिए अनुकूल वातावरण बनते ही सुरक्षात्मक उपाय करना चाहिए.

-बुआई के समय रोग रोधी किस्मों का चयन करें.

-बुआई के पहले कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम या जैविक फफूंदनाशी 5 ग्राम से प्रति किलो ग्राम बीज का बीजोपचार अवश्य करें.

-खड़ी फसल में फफूंद के उपयुक्त वातावरण बनते ही मैंकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2 किलो ग्राम, प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत ईसी का 500 मिली प्रति हेक्टेयर या टेबुकोनाजोल ईसी का 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. अल्टरनेरिया ब्लाईट

अल्टरनेरिया ब्लाईट इस रोग के लगने पर पत्तियों पर धब्बे बनते हैं जो बाद में पीला पड़कर किनारों को झुलसा देते हैं. इस रोग के नियंत्रण के लिए मैकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2 किलो ग्राम या जिनेव 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

कलिका रोग (Bud Disease)

इस रोग में बालियों में दाने के स्थान पर फफूंद का काला धूल भर जाता है. फफूंद के बीजाणु हवा में झड़ने से स्वस्थ बाली भी आक्रांत हो जाती है. यह अन्तः बीज जनित रोग है. इससे बचाव के लिए…

-रोग मुक्त बीज की बुआई करे.

-कार्बेन्डाजिंग 50 घुलनशील चूर्ण का 2 ग्राम प्रति किलोग्राग की दर से बीजोपचार कर बोआई करें.

-दाने सहित आक्रान्त बाली को सावधानीपूर्वक प्लास्टिक के थैले से ढक कर काटने के बाद नष्ट कर दें.

-रोग ग्रस्त खेत की उपज को बीज के रूप में उपयोग न करें.

बिहार सरकार ने किसानों की सुविधा के लिए 24 घंटे उपलब्ध रहने वाला कॉल सेंटर बना रखा है. यहां टॉल फ्री नंबर 15545 या 18003456268 से संपर्क कर किसान अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं.