पितृदोष कितनी पीढ़ियों तक चलता है? गरुड़ पुराण के इन रहस्यों में छुपे हैं पितृदोष से जुड़े सवालों के जवाब!

parmodkumar

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पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार पितृपक्ष में 16 दिनों के लिए पितर यमलोक से धरती पर आते हैं। ऐसे में पितरों को प्रसन्न करने के लिए परिजनों को उनका श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए। पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध कर्म से करने से पितरों के लिए मुक्ति के द्वार खुलते हैं। साथ ही श्राद्ध करने वाले को भी पुण्य मिलता है। पितरों का श्राद्ध करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इससे पितृदोष से मुक्ति मिलती है। गरुड़ पुराण में पितृदोष के कारण और इससे होने वालीं समस्याओं के बारे में बताया गया है। गरुड़ पुराण में इसका उल्लेख किया गया है कि पितृदोष केवल कुछ वर्षों तक नहीं बल्कि कई पीढ़ियों तक चलता है। आइए, जानते हैं गरुड़ पुराण में लिखे गए पितृदोष के रहस्य।

गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति पितृदोष से पीड़ित होता है, तो उसका प्रभाव केवल उसी व्यक्ति पर नहीं पड़ता बल्कि उसके साथ रहने वाले लोगों पर भी पड़ता है। घर के मुखिया पर लगा पितृदोष से बाकी सदस्य भी किसी न किसी समस्या से घिरे रहते हैं। पितृदोष का निवारण न किया जाए, तो किसी पितृदोष 7 पीढ़ियों तक चलता है। पितृदोष पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। पितृदोष सात पीढ़ियों तक चलता है, तो इससे वंश को आगे बढ़ाने में परेशानियां आती हैं। इसके साथ ही पितृदोष लगे घर में बार-बार संतानों की आकस्मिक मृत्यु भी होती रहती है।

ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष का कारण जन्म कुंडली से भी जुड़ा हुआ है। किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में दूसरे, आठवें या दसवें भाव में सूर्य के साथ केतु हो, तो उसे पितृदोष लगता है। वहीं, गरुड़ पुराण में अगर घर के मुखिया ने किसी जीव-जंतु, सांप या फिर किसी असहाय मनुष्य की हत्या या उस पर अत्याचार किया हो, तो भी पितृदोष लगता है।ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष का कारण जन्म कुंडली से भी जुड़ा हुआ है। किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में दूसरे, आठवें या दसवें भाव में सूर्य के साथ केतु हो, तो उसे पितृदोष लगता है। वहीं, गरुड़ पुराण में अगर घर के मुखिया ने किसी जीव-जंतु, सांप या फिर किसी असहाय मनुष्य की हत्या या उस पर अत्याचार किया हो, तो भी पितृदोष लगता है।

घर के मुखिया पर पितृदोष लगने पर वे ज्यादातर समय, क्रोध, निराशा और अवसाद से घिरा रहता है। वंश आगे बढ़ाने में समस्याएं आती हैं। घर में बार-बार हादसे होते रहते हैं। बहुत कोशिशों के बाद भी संतानों को सफलता नहीं मिल पाती है। घर के बाकी सदस्यों को संघर्ष का सामना करना पड़ता है। वहीं, महिलाएं भी हमेशा दुखी रहती हैं। पितृदोष घर के मुखिया की निर्णय क्षमता भी प्रभावित करता है। इससे घर का मुखिया अक्सर ऐसे फैसले ले लेता है, जो उसके परिवार की सुख-समृद्धि और शांति बाधित होती है।