1986 में देवीलाल की लहर में सैनी ने अपना पहला चुनाव जीता और मंत्री बनने में कामयाब हुए। इसके बाद सैनी की ओमप्रकाश महाजन और ओमप्रकाश जिंदल के साथ कई बार चुनावी जंग हुई मगर कामयाबी हाथ नहीं लगी। 1990 तक देवीलाल के साथ रहे। 1991 में देवीलाल ने नए दल के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा जिसमें सैनी ने दूरी बना ली।
जानकारों की मानें तो 1996 में आजाद प्रत्याशी महाजन के साथ सैनी का कड़ा मुकाबला हुआ। लेकिन सैनी ने कांग्रेस का हाथ थाम कर चुनाव लड़ा, फिर भी सफलता हाथ नहीं लगी। 2000 और 2005 का चुनाव आजाद उम्मीदवार के तौर पर लड़ा लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। जब पूर्व सीएम भजनलाल ने कांग्रेस छोड़कर हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठन किया तो सैनी ने कुलदीप बिश्नोई के साथ अपने राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाया। बिश्नोई से अंसतुष्ट होने के बाद 2009 में सैनी ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में फिर से कांग्रेस का दामन थाम लिया। 2014 के चुनाव में सैनी ने फिर से कांग्रेस छोड़ दी और अपने पहले राजनीतिक परिवार इनेलो में शामिल हो गए।


















































