भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार तथा मुख्य रूप से एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा छेड़ी गई मुहिम पर सवाल भी उठ रहे हैं। कई ऐसे गंभीर मामले हैं, जिनमें आगे कार्रवाई व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत केस दर्ज करने की परमिशन ब्यूरो द्वारा सरकार से मांगी गई है, लेकिन सरकार से अभी तक परमिशन नहीं मिली है। अधिनियम की धारा-17ए के तहत कार्रवाई की परमिशन के लिए ब्यूरो ने सरकार के पास 157 मामले भेजे थे।
इनमें से 120 मामलों में सरकार की ओर से आगे कार्रवाई करने की परमिशन ब्यूरो को मिल गई है, लेकिन 37 मामले अभी भी सरकार के स्तर पर लंबित हैं। फरीदाबाद एनआईटी से कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा ने विधानसभा में इस संदर्भ में लिखित में सवाल भेजा था। इसके जवाब में सरकार की ओर से यह खुलासा किया है। इन मामलों में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी डी़ सुरेश से जुड़ा केस भी शामिल है। डी़ सुरेश के खिलाफ नियम-17ए के तहत कार्रवाई के लिए सरकार से अभी तक इजाजत नहीं मिली है।
दरअसल, स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने विधायकों की मांग पर यह व्यवस्था बनाई हुई है कि विधायक महीने में तीन सवाल किसी भी विभाग को लेकर पूछ सकते हैं। इन सवालों का जवाब संबंधित विभागों को लिखित में देना होगा। ब्यूरो के पास चल रहे मामलों में अधिकांश ऐसे हैं, जो सरकार के स्तर पर ही ब्यूरो को जांच के लिए भेजे गए। वहीं कई ऐसे मामले भी हैं, जो सीधे एंटी करप्शन ब्यूरो के नोटिस में आए। विधायकों द्वारा शिकायत करने के बाद भी कई मामलों में ब्यूरो ने जांच शुरू की है।
एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) जिन मामलों की जांच कर रहा है, उनमें हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन, शहरी स्थानीय निकाय – नगर निगम, नगर परिषद व नगर पालिका, शिक्षा विभाग, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग, माइनिंग, ट्रांसपोर्ट, बिजली के अलावा कई विभागों से जुड़े केस शामिल हैं। रोहतक स्थित पंडित लख्मीचंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ परफार्मिंग एंड विजुअल आर्ट्स के अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ भी सरकारी कार्यों में फर्जी बिल के आधार पर 24 लाख से अधिक के गबन का मामला चल रहा है।
अशोक कुमार नामक एक व्यक्ति की शिकायत पर ब्यूरो की ओर से डीएफओ विजेंद्र सिंह के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। आरोप है कि डीएफओ व लिपिक मनजीत सिंह ने मिलीभगत करके पढ़े-लिखे युवाओं को बैक-डेट में ज्वाइन करवाने की एवज में उनसे एक-दो लाख रुपये लेकर वन विभाग, नूंह में युवाओं को नौकरी लगवाने का भरोसा दिया। इतना ही नहीं, इन युवाओं को बैक-डेट में नौकरी देने के आरोप भी लगे हैं।
इतना ही नहीं, एसीबी ने दिनेश कुमार की शिकायत पर वन विभाग में ही भ्रष्टाचार से जुड़े एक और मामले में केस दर्ज किया हुआ है। सरकार से इसकी परमिशन मिल चुकी है। आरोप हैं कि वन विभाग की नर्सरियों में पौधे उगाने के नाम पर करोड़ों रुपये का गबन किया गया। फरीदाबाद के एक अस्पताल के खिलाफ भी भ्रष्टाचार का केस चल रहा है। इस अस्पताल ने आयुष्मान भारत कार्ड धारकों, हरियाणा सरकार के कर्मचारियों, अनुसूचित जाति व गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों से उपचार के लिए नकद पैसा ले लिया। इसके बाद इनके नाम के बिल सरकार के पास भी भेज दिए।
सीएम के निर्देश पर दर्ज हुए केस
मुख्यमंत्री मनोहर लाल के निर्देश पर पंचकूला के सिविल अस्पताल के विस्तार भवन के निर्माण में भ्रष्टाचार पर पीडब्ल्यूडी के एक्सईएन अमित मलिक, एसडीओ नवीन खत्री, जगविंद्र रंगा, राजेंद्र सिंह, अमरदीप दूरान और रोहताश के विरुद्ध कार्रवाई की अनुमति दी गई है। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा पीडब्ल्यूडी चंडीगढ़ के कार्यालय में की गई स्पेशल चेकिंग के दौरान एक्सईएन अरुण सिंहमार, एसडीओ केके सिहाग और दीपक सिंह समेत करीब आधा दर्जन अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई की अनुमति मांगी है। आरटीओ कार्यालय गुरुग्राम में दलालों व वाहन मालिकों से मिलीभगत कर रोड टैक्स प्राप्त किए बिना एनओएसी देने की जांच की अनुमति दी गई है।
जमीन के मामले में 65 पर केस
पलवल जिले से जुड़े जमीन के एक फर्जीवाड़े की भी एंटी करप्शन ब्यूरो कई वर्षों से जांच कर रहा है। इस मामले में मुकदमा दर्ज करने का सुझाव दिया गया था। इस मामले में 65 लोगों पर केस चल रहा है। इनमें पांच दर्जन के करीब को राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी ही शामिल हैं। इनमें कई तहसीलदार व नायब तहसीलदार भी हैं। इसी तरह से जमीन बेचने व खरीदने वालों को भी इस केस में पार्टी बनाया गया है।
नियमों के तहत अनुमति जरूरी
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17-ए के तहत सरकारी विभाग में भ्रष्टाचार की शिकायत होने पर संबंधित अधिकारी के खिलाफ जांच के लिए सरकार से परमिशन लेनी जरूरी है। अनुमति के बिना संबंधित अधिकारी की गिरफ्तार नहीं हो सकती। भ्रष्टाचार के तहत केस दर्ज भी सरकार की मंजूरी के बाद ही होता है। सरकार को इस पर तीन महीने में अपना निर्णय देना होता है। कुछ केस में अभी निर्णय लंबित है।













































