किसान आंदोलन लंबा होता जा रहा है तो सरकार ने कानूनों के पक्ष में दोबारा से अभियान चला दिया है। लोगों को समझाया जा रहा है कि कानून किस तरह से अच्छे है और आंदोलन गलत किया जा रहा है। सरकार के इस अभियान को देखते हुए ही किसान नेताओं ने इसके विपरीत मुहिम छेड़ते हुए कानूनों का नुकसान बताना शुरू कर दिया है। इसके लिए ही शुक्रवार को वेबिनार का आयोजन किया गई। कुंडली बॉर्डर से 5 किसान नेताओं ने सात घंटे तक कानूनों के नुकसान बताए तो सरकार पर आंदोलन को तोड़ने के लिए उत्पीड़न करने के आरोप लगाए। इस वेबिनार से भारत समेत 30 से ज्यादा देशों से लोग जुड़े। किसान नेताओं ने सभी के सवालों के जवाब देने के साथ ही यह समझाया कि किस तरह से किसानों के साथ ही आम आदमी को इन कानूनों से नुकसान होगा। किसानों और सरकार के बीच बात नहीं बनती दिख रही है और ऐसे में सरकार किसी भी तरीके से आंदोलन को खत्म कराने में लगी है तो किसान भी सरकार की पूरी खिलाफत पर उतरे हुए है। सरकार ने अपने नेताओं के सहारे कृषि कानूनों का प्रचार करना शुरू कर दिया है और लोगों को समझाया जा रहा है कि कृषि कानून किस तरह से फायदेमंद साबित होंगे। Parmer Protest, Agriculइसके बाद किसान नेताओं ने शुक्रवार को वेबिनार किया, जिसमें जगजीत सिंह दल्लेवाल, अभिमन्यु कोहाड़, प्रेम सिंह भंगू समेत पांच किसान नेताओं ने कृषि कानूनों से होने वाले नुकसान के बारे में लोगों को बताया तो लोगों के जवाब भी दिए गए।यह वेबिनार करीब 7 घंटे तक चला और इसमें लोगों के मन में उठने वाले हर सवाल का जवाब दिया गया। इस वेबिनार में सबसे बड़ी बात यह रही कि इससे 30 से ज्यादा देशों से लोग जुड़े और सभी ने किसानों को समर्थन करने का एलान किया। संयुक्त किसान मोर्चा के आईटी हेड बलजीत सिंह ने बताया कि वेबिनार में विदेशों से कृषि विशेषज्ञ भी जुड़े। उनमें कनाडा, स्विटजरलैंड, यूएई, यूके, यूएस के कृषि विशेषज्ञ भी जुड़े और विदेशों में होने वाली खेती से अपने यहां की तुलना की गई। इसके साथ ही किस तरह से खेती को बेहतर किया जा सकता है और कृषि कानूनों से हमारे यहां की खेती को क्या-क्या नुकसान होंगे। इस बारे में बताया गया, जिससे लोगों को इस बारे में आसानी से समझाया गया। किसानों ने कृषि कानून रद्द करने की मांग को लेकर 26 नवंबर को दिल्ली के लिए कूच किया था और उसके बाद से नेशनल हाईवे 44 पर डटे हुए है। उस समय केवल पंजाब के करीब 25 हजार किसान थे, लेकिन उसके बाद हरियाणा, यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान, दिल्ली, ओडिशा, केरल समेत अन्य राज्यों के किसान पहुंचने शुरू हो गए और इस आंदोलन से बड़ी संख्या में किसान जुड़ चुके है। आंदोलन में कई बार उतार-चढ़ाव भी आए, लेकिन आंदोलन को अब तीन महीने हो चुके है। इन तीन महीने में संयुक्त किसान मोर्चा की करीब 35 बैठक हुई और आंदोलन को आगे बढ़ाने की रणनीति बनती रही। सरकार के साथ भी संयुक्त किसान मोर्चा की 11 दौर की वार्ता अभी तक हो चुकी है तो एक बार गृहमंत्री के साथ भी बैठक हुई। उसके बावजूद अभी तक कोई समाधान नहीं निकला है और जिस तरह के हालात दिख रहे है, उससे अभी ऐसी कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है।














































