किसान आंदोलन लंबा होने से संयुक्त मोर्चा पर सरकार से बातचीत का रास्ता खोलने के लिए दबाव बढ़ना शुरू हो गया है। किसानों को दिल्ली के बॉर्डर पर बैठे हुए तीन महीने से ज्यादा हो चुके हैं। सरकार से डेढ़ महीने से बातचीत नहीं होने से किसानों का धैर्य खत्म होने लगा है।बॉर्डर पर भीड़ भी कम हो गई है। अब किसान किसी भी तरह से सरकार संग बातचीत का रास्ता खोलना चाहते हैं। अब संयुक्त किसान मोर्चा को चुनाव वाले पांच राज्यों से उम्मीद है। मोर्चा को लगता है कि वहां भाजपा व सहयोगी दलों का विरोध करने से बातचीत का रास्ता शायद खुल जाएगा। कृषि कानून रद्द कराने के लिए 95 दिनों से किसान सड़कों पर डटे हुए हैं। इस बीच किसानों व सरकार के बीच 11 दौर की बातचीत हो चुकी है तो एक बार गृहमंत्री अमित शाह के साथ भी बातचीत हुई थी। किसानों व सरकार के बीच बातचीत में हल नहीं निकला, लेकिन यह बातचीत का सिलसिला लगातार जारी रहा। किसानों व सरकार के बीच आखिरी बैठक 22 जनवरी को हुई थी। 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद से सरकार व किसानों के बीच कोई बैठक नहीं हुई है। ऐसे में बॉर्डर पर अभी मौजूद किसानों व मोर्चा में शामिल कई संगठनों का धैर्य जवाब देने लगा है और संयुक्त किसान मोर्चा पर किसी भी तरह से बातचीत का रास्ता खोलने का दबाव बनने लगा है। अब मोर्चा के नेता उन पांच राज्यों में बड़ा अभियान चलाने की योजना बना चुके है, जहां चुनाव होने हैं। नौ मार्च को बैठक कर बड़ा फैसला ले सकता है मोर्चा
किसान 6 मार्च को एक्सप्रेस वे जाम करेंगे और उससे सरकार को ताकत दिखाएंगे। वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने अभी पांच राज्यों में सरकार के विरोध का एलान किया है और देखा जा रहा है कि सरकार आगे किस तरह का कदम उठाती है। सरकार का सकारात्मक रुख नहीं दिखता है तो पांच राज्यों में बड़ा अभियान छेड़ा जाएगा। संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य दर्शनपाल ने कहा कि किसान मोर्चा की 9 मार्च को दोबारा से बैठक हो सकती है।
लंबा हो रहा किसान आंदोलन, सरकार का प्रस्ताव न मिलने से दबाव में संयुक्त मोर्चा, चुनाव वाले पांच राज्यों से उम्मीद
Parmod Kumar