उत्तराखंड में पूर्व सीएम हरीश रावत ने परिवर्तन यात्रा के दौरान राज्य में कांग्रेस के नए राजनीतिक दांव की तरफ इशारा किया है. हरीश रावत ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं मां गंगा से प्रार्थना करता हूं कि मेरे जीवन भी ऐसा क्षण आए जब उत्तराखंड से एक दलित और गरीब शिल्पकार के बेटे को इस राज्य का मुख्यमंत्री बनता देख सकूं. हरीश रावत के इस इशारे से उत्तराखंड में राजनीतिक हलचल बढ़ गयी है.
हरीश रावत ने कहा- दलित वर्ग कितना कांग्रेस के साथ है, यह अहम नहीं है. महत्वपूर्ण यह है कि दलित समाज ने कितने वर्षों तक कांग्रेस को सहारा देकर केंद्र व राज्यों में सत्ता में पहुंचाने का काम किया. हम प्रतिदान देंगे. अवसर मिला तो उनकी आकांक्षाओं के साथ कांग्रेस चलेगी. बता दें कि उत्तराखंड में कुछ ही महीनों बाद विधानसभा चुनाव हैं और हरीश रावत सबसे बड़े कांग्रेसी नेता हैं और सीएम बनने की रेस में भी सबसे आगे हैं. ऐसे में उन्होंने दलित सीएम का दांव चलकर एक साथ कई राजनीतिक समीकरण साधने की कोशिश की है.
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दलित कार्ड से सियासी समीकरणों को प्रभावित करने की तैयारी में हो, लेकिन उसके पास सांसद प्रदीप टम्टा के अलावा कोई बड़ा दलित चेहरा नहीं है. हालांकि, कार्यकारी अध्यक्ष डॉ.जीत राम और पूर्व विधायक नारायण राम आर्य सरीखे नेता हैं. एक समय कद्दावर राजनेता यशपाल आर्य कांग्रेस में बड़ा दलित चेहरा थे, लेकिन अब वह बीजेपी में है.
कितनी है राज्य में दलित आबादी
गौरतलब है कि उत्तराखंड में अनुसूचित जाति की आबादी 18.50 फीसदी के करीब है. 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में अनुसूचित जाति की जनसंख्या 18,92,516 है. उत्तराखंड के 11 पर्वतीय जिलों में दलित आबादी 10.14 लाख है जबकि तीन मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में 8.78 लाख है. सूबे में सबसे ज्यादा अनुसूचित जाति वर्ग की आबादी हरिद्वार जिले में 411274 है. उत्तराखंड में दलित कार्ड हरीश रावत ने ऐसे ही नहीं खेला बल्कि राज्य में बसपा और आम आदमी पार्टी की बढ़ते सक्रियता को भी काउंटर करने की रणनीति मानी जा रही है.
बीजेपी ने कांग्रेस को दी थी शिकस्त
बीजेपी ने 2017 के चुनाव में राज्य की 70 सदस्यीय विधानसभा में 57 सीटें जीतकर कांग्रेस को करारी शिकस्त दी थी. इतना ही नहीं वोट-शेयर के मामले में भाजपा ने कांग्रेस से 13 फीसदी ज्यादा हासिल किया था, जो 2019 के लोकसभा चुनाव में बढ़कर 30 फीसदी हो गया है. उधर कांग्रेस गुटबाजी से जूझ रही है. कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रीतम सिंह और हरीश रावत के बीच छत्तीस के आंकड़े हैं. प्रीतम सिंह किसी भी सूरत में नहीं चाहते थे कि कांग्रेस हरीश रावत सिंह के सीएम का चेहरा बनाकर चुनावी मैदान में उतरे बल्कि सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने की वकालत कर रहे थे. वहीं, हरीश रावत शुरू से सीएम चेहरे देने की मांग कांग्रेस हाईकमान से कर रहे थे. ऐसे में हरीश रावत ने खुद को सीएम की रेस से बाहर करते हुए दलित कार्ड खेल दिया है, जिस का प्रीतम सिंह भी विरोध नहीं कर सकेंगे.
बसपा दलित-मुस्लिम समीकरण साध रही है
उधर बसपा उत्तराखंड में दलित और मुस्लिम समीकरण पर दांव खेल रही है, जिसके चलते शमसुद्दीन राईनी को जिम्मेदारी सौंप रखी है तो आम आदमी पार्टी दिल्ली की तर्ज पर मुफ्त घोषणाएं करके अपना सियासी आधार बढ़ाने में जुटी हैं. साथ ही दलितों को साधने के लिए दिल्ली के दलित विधायक लगा रखे हैं. उत्तराखंड में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले हुए तीन विधानसभा चुनाव में दलित वोट बैंक पर बसपा ने भी सेंध लगाई.
2012 में 12.28 प्रतिशत वोट के साथ तीन सीटें बसपा ने जीती थीं जबकि 2007 में 11.76 प्रतिशत वोट हासिल कर आठ सीटें हासिल की थी. हालांकि, 2017 में उसका वोट बैंक खिसक कर 7.04 प्रतिशत रह गया और उसकी सीटों का खाता भी नहीं खुल सका. उधमसिंह नगर में भी बसपा दलित आबादी के दम पर ही चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही है. ऐसे में कांग्रेस ने दलित सीएम का दांव खेलकर बसपा के सियासी तौर पर काउंडर करने का दांव चला है.