हरियाणा: नहीं मिल रहे जैविक खाद के खरीदार

Parmod Kumar

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हरियाणा में खरीदार न मिलने से हरियाणा गो सेवा आयोग के जैविक खाद के 50 हजार बैग पर संकट खड़ा हो गया है। आयोग को कृषि विभाग के खाद खरीदने की उम्मीद थी, लेकिन विभाग ने सीधी खरीद से पल्ला झाड़ लिया है। अब आयोग खाद बेचने के लिए अमेजॉन व फ्लिपकार्ट की मदद लेने की तैयारी में है, साथ ही सेवन सिस्टर्स राज्यों पर नजर है। आयोग ने गाय के चार हजार टन गोबर से जैविक खाद के 50-50 किलोग्राम के 50 हजार बैग तैयार किए हैं। इसके एक बैग की कीमत मात्र 960 रुपये है, जबकि डीएपी का नया रेट 1350 रुपये है। डीएपी के लिए लंबी कतारों में लगना पड़ता है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल व कृषि मंत्री जेपी दलाल की योजना जैविक खाद को डीएपी का विकल्प बनाने की है, लेकिन किसी खरीद एजेंसी ने अभी तक कदम आगे नहीं बढ़ाया है। कृषि विभाग को 2021-22 में जैविक खाद को बढ़ावा देने के लिए 100 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, लेकिन इस राशि का उपयोग हुआ ही नहीं। गो सेवा आयोग ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से खाद को प्रमाणित करवा लिया है। यह उच्च गुणवत्ता वाली है और कृषि भूमि के लिए लाभदायक है। यह रासायनिक खाद की वजह से उर्वरकता खो रही मिट्टी को दो-तीन साल में अपने पुरानी स्थिति में लाने की क्षमता रखती है। आयोग के सचिव डॉ. चिरंतन कादियान ने कहा कि जैविक खाद बनाने से गोशालाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। गायों के गोबर से मीथेन बनती है जो जलवायु को गर्म करती है। गोबर से खाद बनने पर मीथेन बनने में कमी आएगी। रासायनिक खादों पर आत्मनिर्भर नहीं रहना पड़ेगा। जमीन की उर्वरता खत्म नहीं होगी। कृषि विभाग को इसे अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाना चाहिए। जैविक खाद को अमेजॉन व फ्लिपकार्ट के जरिये बेचने की तैयारी भी कर रहे हैं। दोनों की वेबसाइट पर उत्पाद को डाला जा रहा है। पुराना उत्पाद बिकेगा, तभी तो नया बनाएंगे। आयोग ने असम, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर व सिक्किम सरकार से संपर्क किया है। इन्होंने जैविक खाद के इस्तेमाल में रुचि दिखाई है। हालांकि, अभी यहां से खरीद का आर्डर नहीं आया है। केंद्र सरकार इन राज्यों को पूरी तरह से जैविक खेती आधारित बनाने की तैयारी में है, जिससे आयोग को खाद बिकने की उम्मीद बंधी है। कृषि विभाग के निदेशक डॉ. हरदीप सिंह ने कहा कि गो सेवा आयोग को जैविक खाद अपनी पंजीकृत गोशालाओं में रखकर बेचनी चाहिए। विभाग के पास इसकी बिक्री के लिए कोई वेंडर नहीं है। वे किसानों को इसके उपयोग के लिए प्रेरित कर सकते हैं, दफ्तरों में रखकर इसे नहीं बेचा जा सकता। आयोग को हैफेड, बीज विकास निगम और अन्य आयोगों से संपर्क करना चाहिए। चूंकि, बिक्री केंद्र निगमों के ही होते हैं।