हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने धरना स्थलों से किसानों द्वारा अपने धरने उठाने के निर्णय का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन समाप्त होने के बाद किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लिए जाने के बारे में बातचीत चल रही है. मुख्यमंत्री ने यह बात प्रशासनिक सुधार विभाग की 15वीं बैठक के बाद पत्रकारों से बातचीत के दौरान कही. उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान जिन लोगों की मृत्यु की सूची किसानों द्वारा दी गई है उसकी पुलिस विभाग द्वारा वेरिफिकेशन की जाएगी.
बताया जाता है कि वेरिफाई लिस्ट के आधार पर ही मुआवजा मिलेगा. हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार ने मृतक किसानों के परिजनों को मुआवजा देने पर सैद्धांतिक सहमति दी है. किसानों के खिलाफ दायर मुकदमों को वापिस लिए जाने के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब भी मनोहर लाल ने दिया. उन्होंने कहा कि हरियाणा के सभी जिला उपायुक्त, पुलिस अधीक्षक एवं संबंधित अधिकारी मिलकर रिपोर्ट तैयार करेंगे.
रिपोर्ट में क्या होगा
सीएम ने बताया कि रिपोर्ट में पता किया जाएगा कि कितने केस तुरंत वापस लिए जा सकते हैं. जो मुकदमे कोर्ट में जा चुके हैं उनका वर्गीकरण किया जाएगा और उन्हें अलग-अलग समय पर वापस लिए जाने के बारे में काम किया जाएगा. टोल के संबंध में उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन के कारण जो टोल अब तक बंद थे वे जल्द ही खुल जाएंगे और टोल की दरों में कोई वृद्धि नहीं की जाएगी.
कब से चल रहा था आंदोलन, कैसे खत्म हुआ
मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन चल रहा था. 26 नवंबर 2020 को इसकी शुरुआत हुई थी. जबकि 19 नवंबर 2021 को इसे खुद प्रधानमंत्री मोदी ने वापस लेने का फैसला किया. फिर एमएसपी की गारंटी, बिजली बिल, पराली से संबंधित मुकदमों जैसे मुद्दों पर बातचीत के लिए किसानों को लिखित आश्वासन देने एवं कमेटी बनाने के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने 378 दिन बाद आंदोलन को वापस लेने का निर्णय लिया. अब किसान दिल्ली बॉर्डर से अपने घर जा रहे हैं.
हरियाणा सरकार की ज्यादती को नहीं भूलेंगे किसान!
आंदोलनकारियों को अगर सबसे ज्यादा किसी सूबे में दिक्कत आई तो वो है हरियाणा. जब पंजाब के किसान आंदोलन के लिए दिल्ली की ओर निकले तभी से हरियाणा सरकार ने उनसे पंगे लेने शुरू कर दिए थे. उनके रास्ते बंद करवाए. तब खट्टर सरकार ने ही सड़कें खुदवाईं, बुजुर्ग किसानों पर ठंड में पानी की बौंछारें करवाई. दो-बार लाठी चार्ज करवाया.
यहां तक कि किसानों का ‘सिर फोड़ने’ वाला बयान देने वाले एसडीएम आईएएस आयुष सिन्हा का सरकार ने जमकर बचाव किया. इसलिए यहां किसानों और सरकार के बीच आए दिन तनातनी चलती रही. सरकार किसानों पर केस लादती रही. बताया जाता है कि किसान आंदोलन के वक्त किसानों पर सबसे ज्यादा केस हरियाणा में ही दर्ज किए गए हैं. देखना है कि इन्हें सरकार कब तक वापस लेती है.