हरियाणा की कृषि भूमि पर संकट: मिट्टी की उर्वरक क्षमता घटती जा रही है
मिट्टी में जीवाणुओं की अहम भूमिका हरियाणा के खेतों में मिट्टी की उर्वरक क्षमता तेजी से घट रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, एक मुट्ठी मिट्टी में करीब 7 अरब जीवाणु होते हैं, जो नाइट्रोजन और फॉस्फोरस जैसे पोषक तत्वों का निर्माण करते हैं। लेकिन लगातार रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से यह प्राकृतिक चक्र बाधित हो रहा है।
पराली जलाने से बिगड़ रही मिट्टी की संरचना पराली जलाने के चलते खेतों की मिट्टी की गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है। मिट्टी में मौजूद बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्म जीव नष्ट हो रहे हैं। यह समस्या खासतौर पर उन क्षेत्रों में गंभीर है, जहां धान और अन्य फसलें उगाई जाती हैं।
रसायनिक उर्वरकों का दुष्प्रभाव डीएपी और यूरिया जैसे रसायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी के पोषक तत्व खत्म हो रहे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, हरियाणा की 60-70% कृषि योग्य भूमि बांझ होने के कगार पर है।
प्राकृतिक खेती की ओर लौटने की जरूरत प्राकृतिक खेती में जैविक खाद, गोबर, और अन्य प्राकृतिक अवशेषों का उपयोग करके मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखा जा सकता है। प्रोफेसर जयपाल आर्य का कहना है कि किसान गोबर और गोमूत्र का उपयोग कर 24-72 घंटे में खाद बना सकते हैं।
गोबर के अद्भुत गुण 10 ग्राम गोबर में 84 लाख बैक्टीरिया होते हैं, जो मिट्टी की उर्वरक क्षमता को पुनर्जीवित करने में सहायक हैं। गोबर से बनी खाद मिट्टी में प्राकृतिक पोषक तत्वों को बहाल करती है और रसायनिक उर्वरकों की आवश्यकता को समाप्त करती है।
कैंसर और अन्य बीमारियों का बढ़ता खतरा डीएपी, यूरिया और कीटनाशकों के उपयोग से केवल मिट्टी ही नहीं, बल्कि इंसान भी प्रभावित हो रहे हैं। इन रसायनों के कारण कैंसर और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।
प्राकृतिक विधि से फसलों की सिंचाई प्राकृतिक खाद के उपयोग से सिंचाई में भी कमी लाई जा सकती है। यूरिया और डीएपी के उपयोग वाले खेतों में 5-6 बार पानी देना पड़ता है, जबकि जैविक खेती से मात्र 2-3 बार सिंचाई में बंपर उत्पादन संभव है।
किसानों के लिए सुझाव प्राकृतिक खेती अपनाकर किसान अपने खेतों की उर्वरक क्षमता को सुधार सकते हैं। गोबर, फसल अवशेष, और जैविक खाद के उपयोग से न केवल लागत कम होगी, बल्कि उत्पादन भी बढ़ेगा। इसके साथ ही, पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सकेगा।
निष्कर्ष मिट्टी को बचाना और कृषि को टिकाऊ बनाना किसानों के हाथ में है। प्राकृतिक खेती की विधि अपनाने से न केवल खेती का खर्च कम होगा, बल्कि मिट्टी, पानी और हवा को भी सुरक्षित रखा जा सकेगा। किसान यदि धरती को मां समझकर उसकी देखभाल करें, तो खेती को नई ऊंचाईयों तक ले जाया जा सकता है।

















































