Haryana Manisha Murder Case: पुलिस की असफलता के बाद अब CBI के लिए चुनौती बना मनीषा हत्याकांड, इन सवालों के ढूंढे जा रहे जवाब

parmodkumar

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भिवानी: 19 वर्षीय शिक्षिका मनीषा की रहस्यमयी मौत ने न केवल पूरे हरियाणा को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि यह मामला अब सीबीआई के लिए भी बड़ी चुनौती बन गया है। पुलिस की शुरुआती जांच और आत्महत्या की थ्योरी को परिवार ने खारिज कर दिया, जिसके चलते सरकार को यह मामला सीबीआई को सौंपना पड़ा। 11 अगस्त को लापता हुई मनीषा का शव 13 अगस्त को खेत में मिला था। पुलिस ने घटनास्थल से एक कथित सुसाइड नोट बरामद करने का दावा किया और इसे आत्महत्या करार देने की कोशिश की। लेकिन मनीषा के परिजनों ने इस थ्योरी को तुरंत खारिज कर दिया। उनका कहना था कि मनीषा एक महत्वाकांक्षी युवती थी, जो पढ़ाई जारी रखना चाहती थी। वो परिवार की जिम्मेदारियां भी निभा रही थी। ऐसे में आत्महत्या की बात हजम नहीं होती।

इसके बाद पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया और तीन बार पोस्टमार्टम कराया गया। लेकिन जांच के दौरान हुई देरी और विरोधाभासी दावों ने मामले को और उलझा दिया। राज्य सरकार ने दबाव में आकर एसपी का तबादला किया और पांच पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। मामला सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनते ही स्थिति और पेचीदा हो गई। तरह-तरह की साजिश की थ्योरी, वीडियो और पोस्ट सामने आने लगीं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि सोशल मीडिया पर फैलाई गई इन अफवाहों ने जांच को ‘पटरी से उतार दिया’।

34 सोशल मीडिया अकाउंट्स पर कार्रवाई
भिवानी पुलिस ने करीब 34 सोशल मीडिया अकाउंट्स की पहचान की, जिन पर आरोप है कि उन्होंने अफवाहें फैलाईं और समाज में नफरत भड़काने वाले पोस्ट किए। पुलिस ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और नए भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धाराओं के तहत कई FIR दर्ज की हैं। एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी किया गया है। डीजीपी शत्रुजीत सिंह कपूर ने सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि कुछ शरारती तत्व सोशल मीडिया का दुरुपयोग कर सनसनी फैलाने और सुर्खियां बटोरने का काम कर रहे हैं।

सीबीआई के सामने चुनौती
मनीषा की मौत के मामले में अब सीबीआई के पास जांच की जिम्मेदारी है। पुलिस की विफलता और जनता का अविश्वास इसे और चुनौतीपूर्ण बना देता है। सीबीआई को न सिर्फ मौत की असल वजह का पता लगाना है, बल्कि उन सवालों का भी जवाब देना है जो सोशल मीडिया और परिवार की ओर से उठाए जा रहे हैं। इस बीच, प्रदेश सरकार और पुलिस दोनों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। दस दिनों तक चले घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया कि पुलिस मामले को बेहतर ढंग से नहीं संभाल पाई। तीन पोस्टमार्टम और बार-बार बदलती जांच थ्योरी ने लोगों के शक को और गहरा कर दिया।