अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा में जारी विवाद बढ़ता ही जा रहा है। अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा में कुलदीप बिश्नोई का कद घटता ही जा रहा है। प्रधान देवेंद्र बूड़िया के साथ शुरू हुए इस विवाद ने कुलदीप बिश्नोई को अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के अंदर बहुत कमजोर कर दिया है। जिस कारण कुलदीप बिश्नोई की की राजनीति के बाद बिश्नोई समाज पर पकड़ भी कमजोर होती जा रही है। कुछ दिनों पहले कुलदीप बिश्नोई ने अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के संरक्षक पद से इस्तीफा देते हुए मुकाम धाम के पीठाधीश्वर स्वामी रामानंद को संरक्षक के पद पर नियुक्त किया था।
लेकिन अब मुकाम धाम के पीठाधीश्वर स्वामी रामानंद अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के संरक्षक पद के आॅफर को ठुकरा दिया है। उन्होंने साफ कह दिया कि उन्हें संरक्षक पद नहीं चाहिए। कुलदीप ने इस बारे में उनसे कोई बात भी नहीं की। इस पद पर किसी और की नियुक्ति होनी चाहिए। इससे पहले कुलदीप बिश्नोई ने देवेंद्र बूड़िया की जगह पर परसराम बिश्नोई को प्रधान बनाया था लेकिन परसराम ने भी पद लेने से इनकार कर दिया। गौरतलब है कि कुलदीप बिश्नोई पूर्व सीएम चौधरी भजनलाल के देहांत के बाद अखिल भारतीय बिश्नोई महासभा के संरक्षक बनाए गए थे। 12 साल तक इस पद पर रहने के बाद हाल ही में उन्होंने समाज के नाम एक संदेश जारी किया और संरक्षक के पद से इस्तीफा दे दिया।
मुकाम धाम कुलदीप बिश्नोई के साथ नहीं
मुकाम पीठाधीश्वर के इस फैसले एक बात तो साफ हो गई है कि अब कुलदीप बिश्नोई समाज पर से अपनी पकड़ खो चुके है। मुकाम पीठाधीश्वर ने खुद संरक्षक का पद ठुकराकर यह सिद्ध कर दिया है। वहीं मौजूदा प्रधान देवेंद्र बूड़िया ने कुलदीप के खिलाफ समाज के सामने जो बातें रखीं, उससे समाज उनके खिलाफ हो रहा है।
कुलदीप बिश्नोई ने बिश्नोई महासभा का चुनाव करवाने के लिए 29 सदस्यीय कमेटी बनाई थी। इस कमेटी को संरक्षक के नेतृत्व में काम करना था। ऐसे में रामानंद स्वामी के पद ठुकराने के बाद यह समिति अब किसके दिशा निर्देश पर काम करेगी, यह बड़ा सवाल बना हुआ है।