निरक्षरों और स्कूल न जाने वाले बच्चों को ग्रामीण कार्यात्मक साक्षरता परियोजना और राज्य प्रौढ शिक्षा कार्यक्रम के तहत 35 साल पहले पढ़ाने वाले अनुदेशकों के लिए राहत भरी खबर है। शिक्षा विभाग इन्हें एरियर के रूप में आर्थिक लाभ देने जा रहा है। शिक्षा विभाग ने इस दौरान भागीदारी निभाने वाले अनुदेशकों की रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। रिपोर्ट को लेकर शिक्षा विभाग ने तीन सदस्यीय कमेटी का गठन किया है। ये कमेटी अनुदेशकों का पता लगाकर उनसे दस्तावेज लेगी और निदेशालय को भेजेगी। निदेशालय स्तर पर इन्हें एरियर देने की प्रक्रिया शुरू होगी।
शिक्षा विभाग ने ये प्रक्रिया कोर्ट के आदेश पर शुरू की है। अनुदेशकों ने जेबीटी के बराबर पे स्केल देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। इसी के तहत शिक्षा विभाग को एरियर देने के निर्देश दिए गए हैं। जिला शिक्षा विभाग ने इसके लिए उल्लास कार्यक्रम के जिला समन्वयक पवन सागर,सहायक रत्तन सिंह व लिपिक मोहन सिंह को कमेटी में शामिल किया है।
शिक्षा विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इस कार्यक्रम के तहत पढ़ाने वाले अनुदेशकों को ज्वाइनिंग पत्र, रिलिविंग पत्र, सामान जमा करवाने की रसीद या फिर बैंक स्टेटमेंट प्रूफ के तौर पर दिखाना होगा।
योजना के तहत अनुदेशक रहे रण सिंह का कहना है कि 1981 में लगे थे। इस दौरान 6 से 14 साल के बच्चे जो स्कूल नहीं जाते और 15 से 35 साल के निरक्षरों को पढ़ाया जाता था। उन्हें चार घंटे पढ़ाना होता था। इसके बदले 150 रुपये मिलते थे। लेकिन 1990 में हटा दिया गया। दोबारा लगाने और जेबीटी के बराबर पे स्केल को लेकर चंडीगढ़ में आंदोलन किया गया, लेकिन उन्हें जेल भेज दिया गया था।
अधिकारी के अनुसार
डीइओ के निर्देश पर कमेटी बन चुकी है। कमेटी जल्द अनुदेशकों से रिकॉर्ड लेना शुरू कर देगी। अनुदेशकों को कुछ दस्तावेज देने होंगे जिससे पता चल सके कि वह इस योजना के तहत काम कर चुके हैं। रिपोर्ट बनाकर उच्च अधिकारियों को भेज दी जाएगी। – पवन सागर, जिला समंवयक, उल्लास कार्यक्रम एवं कमेटी सदस्य।
निरक्षरों को पढ़ाने के लिए अनुदेशक लगाए गए थे, जिन्हें वर्ष 1990 में हटा दिया गया था। शिक्षा विभाग द्वारा इन्हें एरियर दिया जाना है। रिपोर्ट तैयार करने के लिए कमेटी का गठन कर दिया गया है।