Highcourt: 50 वर्ष से पेंशन के लिए भटक रही बुजुर्ग विधवा, HC ने कहा-ये सांविधानिक मूल्यों के विपरीत

parmodkumar

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पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक बुजुर्ग विधवा को करीब पांच दशकों तक पारिवारिक पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों से वंचित रखने के मामले में प्रशासनिक उदासीनता पर कड़ी टिप्पणी की है।

कोर्ट ने इसे सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता और लापरवाही का दुखद और पीड़ादायक चित्र बताया है। कोर्ट ने कहा कि इसके कारण एक अशिक्षित और निर्धन महिला को न्याय के लिए दर-दर भटकना पड़ा।
हरियाणा के विद्युत विभाग में कार्यरत स्वर्गीय महा सिंह की पत्नी लक्ष्मी देवी ने याचिका में बताया था कि महा सिंह की वर्ष 1974 में सेवा के दौरान मृत्यु हो गई थी। इसके बाद याची को केवल मामूली अनुग्रह राशि दी गई, जबकि पारिवारिक पेंशन, ग्रेच्युटी और अन्य वैधानिक लाभ वर्षों तक जारी नहीं किए गए।

अदालत ने रिकॉर्ड का अवलोकन करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने बार-बार विभागीय अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन विभाग आपसी पत्राचार तक सीमित रहा और कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया। कोर्ट ने विशेष रूप से इस तथ्य पर चिंता जताई कि 2005 में दायर एक पूर्व रिट याचिका में दिए गए निर्देशों के बावजूद भी प्रशासन ने याचिकाकर्ता की मांगों पर प्रभावी निर्णय नहीं लिया।

अदालत ने कहा कि एक 80 वर्ष से अधिक उम्र की बीमार और असहाय विधवा को इस प्रकार अनिश्चितता में रखना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि संवैधानिक मूल्यों के भी विपरीत है। न्यायमूर्ति बराड़ ने अपने आदेश में कहा कि संवैधानिक न्यायालयों का यह पवित्र दायित्व है कि वे समाज के सबसे कमजोर वर्गों के अधिकारों की रक्षा करें। उन्होंने स्पष्ट किया कि सामाजिक न्याय कोई गौण सिद्धांत नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा है। यदि ऐसे मामलों में अदालतें हस्तक्षेप नहीं करेंगी, तो संविधान में निहित समानता और गरिमा का वादा खोखला हो जाएगा।

अदालत ने यह भी आश्चर्य जताया कि विभाग ने कभी यह स्पष्ट नहीं किया कि यदि मृत कर्मचारी पेंशन योजना के अंतर्गत नहीं था, तो उसे जीपीएफ खाता संख्या कैसे आवंटित की गई। साथ ही, विभाग द्वारा संक्षिप्त जवाब दाखिल करने और याचिकाकर्ता के दस्तावेजों का ठोस खंडन न करने को भी कोर्ट ने गंभीरता से लिया। हाईकोर्ट ने हरियाणा सरकार के बिजली विभाग के प्रधान सचिव/प्रशासनिक प्रभारी को निर्देश दिया कि वे दो माह के भीतर स्वयं मामले की जांच करें और यह सुनिश्चित करें कि याचिकाकर्ता को उसके सभी वैध बकाया लाभ तत्काल जारी किए जाएं। कोर्ट ने कहा कि न्याय तभी सार्थक है जब वह समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति तक समय पर पहुंचे।