बावजूद इसके अब तक पूरे मामले में किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। जबकि अभ्यर्थियों ने कोर्ट को 22 संदिग्ध लोगों के मोबाइल नंबर दिए थे, जो पेपर होने से दो दिन पहले ही बंद हो गए थे। इससे स्पष्ट होता है कि सरकार खुद भर्ती घोटाले करने वालों को संरक्षण दे रही है। इससे पहले भी एचसीएस और नायब तहसीलदार से लेकर कांस्टेबल और क्लर्क तक की भर्तियों में घपले देखने को मिले थे। पिछले 9 साल में इस सरकार के दौरान 30 से ज्यादा पेपर लीक हो चुके हैं। कैश फॉर जॉब घोटाले के अनगिनत मामले सामने आए हैं। एचपीएससी के कार्यालय में अधिकारी लाखों रुपए के साथ पकड़े गए और एचएसएससी के कार्यालय में नतीजों के साथ छेड़छाड़ करते कारिंदे पकड़े गए। लेकिन किसी भी मामले में जांच उच्च पदों पर विराजमान और सत्ताधारियों तक नहीं पहुंची।
हुड्डा ने कहा कि किसी भी मामले में एचएसएससी और एचपीएससी के सदस्यों और चेयरमैन की कोई जांच नहीं हुई। जबकि कांग्रेस ने सड़क से लेकर विधानसभा तक बार-बार मांग उठाई कि दोनों संस्थाओं को तुरंत प्रभाव से बर्खास्त करके पूरे मामले की जांच हाई कोर्ट के सीटिंग जज की निगरानी में करवानी चाहिए। दफ्तर में बैठकर नौकरियों को बेचने वालों के साथ-साथ उन्हें संरक्षण देने वाले उच्च पदों पर विराजमान लोगों को भी कानून के दायरे में लाकर कार्रवाई करनी चाहिए। अगर सरकार घोटालेबाजों को संरक्षण नहीं दे रही तो वह निष्पक्ष और उच्चस्तरीय जांच से क्यों भाग रही है?
भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि कोर्ट में बीजेपी-जेजेपी के 75% आरक्षण वाले ड्रामे की भी पोल खुल गई। सरकार द्वारा बिना किसी अध्ययन के लागू किए गए कानून को कोर्ट ने बर्खास्त कर दिया। हुड्डा ने कहा कि अगर यह सरकार हरियाणवी युवाओं को रोजगार देने के प्रति गंभीर होती तो सबसे पहले सरकारी भर्तियों में स्थानीय युवाओं को संरक्षण देने का काम करती। लेकिन इसके विपरीत अन्य राज्य के लोगों को ज्यादा से ज्यादा नौकरियां देने के मकसद से बीजेपी-जेजेपी ने बाकायदा हरियाणा डोमिसाइल के नियमों में ढिलाई दी।