मॉनसून में देरी से खरीफ फसलों की बुवाई पर कितना असर पड़ा है, केंद्रीय कृषि मंत्री ने संसद में दिया जवाब

Parmod Kumar

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खरीफ फसलों की बुवाई एक हद तक मॉनसून पर निर्भर करती है. अगर मॉनसून में देरी होती है तो इसका सीधा असर खरीफ फसलों की बुवाई-रोपाई पर पड़ता है. मॉनसून सामान्य रहने से कृषि लागत में कमी आती है और पैदावार अच्छी होने की उम्मीद रहती है. यहीं कारण है कि भारतीय उपमहाद्वीप के किसानों के लिए और देश की अर्थव्यवस्था के लिए मॉनसून काफी मायने रखता है.

इस बार मॉनसून दो दिन की देरी से यानी 3 जून को केरल के तट पर पहुंचा था. लेकिन इसके बाद मॉनसून में गजब की तेजी देखी गई और यह देश के ज्यादातर हिस्से में 7-10 दिन पहले पहुंच गया. हालांकि पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली जैसे राज्यों को बारिश के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा. मॉनसून में देरी का असर इस क्षेत्र में हो रही खरीफ की खेती पर भी पड़ा.

सामान्य से 5 प्रतिशत कम हुई है बारिश

मॉनसून ने जब रफ्तार पकड़ी तब भी कई हिस्से में जरूरत के हिसाब से बारिश नहीं हुई. मध्य प्रदेश जैसे राज्य के ज्यादातर जिलों में 21 जुलाई तक सामान्य से काफी कम वर्षा हुई है. वहीं भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, 21 जुलाई तक के आंकड़ों पर गौर करें तो दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बारिश सामान्य से 5 प्रतिशत कम है. मॉनसून में देरी और सामान्य से कम वर्षा को लेकर संसद में भी एक सवाल पूछा गया था.

राज्यसभा के एक सदस्य ने लिखित प्रश्न कर जानकारी चाही थी कि आखिर मॉनसून में देरी का कितना असर खरीफ फसलों पर पड़ा है? इसका उत्तर देते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि खरीफ फसलों पर मॉनसून की देरी के प्रभाव का आकलन करना जल्दबाजी होगी क्योंकि बुवाई और रोपाई का काम अभी भी जारी है.

शुरुआती तेजी के बाद थम गई थी मॉनसून की प्रगति

कृषि मंत्री ने कहा कि मौसम विभाग के अनुसार, 21 जुलाई तक की अवधि के दौरान दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की बारिश सामान्य बारिश से 5 प्रतिशत कम है. उन्होंने कहा, ‘खरीफ फसलों के उत्पादन का आकलन करना जल्दबाजी होगी क्योंकि बुवाई अभी भी जारी है.’ तोमर ने कहा कि मॉनसून एक जून के सामान्य आगमन समय की तुलना में तीन जून को केरल में प्रवेश कर गया था

आईएमडी के मुताबिक, एक बार रफ्तार पकड़ने के बाद मॉनसून की प्रगति रुक गई और 18 जून से लेकर करीब जुलाई मध्य तक मॉनसून में कोई प्रगति नहीं हुई. 13 जुलाई के बाद दोबारा मॉनसून सक्रिया हुआ और उत्तर-पश्चिम भारत में बारिश की गतिविधियों की शुरुआत हुई. इससे किसानों को काफी राहत मिली और फसल सूखने से बच गई. वहीं जहां पर रोपाई-बुवाई का काम रुका पड़ा था, उसमें भी तेजी दर्ज हुई.