सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुसार सीआईसी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिश पर की जाती है। इसमें लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं।
सूचना आयुक्त हीरालाल सामरिया ने छह नवंबर को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के प्रमुख के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 63 वर्षीय सामरिया को राष्ट्रपति भवन में एक समारोह के दौरान मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में शपथ दिलाई। अब इस नियुक्ति पर राजनीतिक विवाद पैदा हो गया है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त चयन समिति में विपक्ष के सदस्य एवं कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर नाराजगी जताई है। साथ ही आरोप लगाया है कि चयन के बारे में उन्हें ‘पूरी तरह से अंधेरे’ में रखा गया।
भारी मन से मैं…
उन्होंने पत्र में लिखा, ‘अत्यंत दुख और भारी मन से मैं आपके संज्ञान में लाना चाहता हूं कि केंद्रीय सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के चयन के मामले में सभी लोकतांत्रिक मानदंडों, रीति-रिवाजों और प्रक्रियाओं को ताक पर रख दिया गया।’ उन्होंने कहा कि सरकार ने चयन के बारे में न तो उनसे सलाह ली और न ही उन्हें जानकारी दी।
तारीख में बदलाव कर दिया गया
चौधरी के करीबी सूत्रों का कहना है कि उन्हें एक बैठक के बारे में बताया गया था, लेकिन बाद में तारीख में बदलाव कर दिया गया था, जिसके कारण उन्हें अपने सभी कामों को फिर से शेड्यूल करना पड़ा। केवल यह पता लगाने के लिए कि सीआईसी के नाम की घोषणा की गई है इसके लिए उन्होंने कोलकाता की अपनी यात्रा स्थगित कर दी। लेकिन फिर भी उन्हें नहीं बताया गया।