कानून बना तो तय भाव पर ही बिकेगी फसल MSP पर गारंटी से जानें कितना फायदा और क्या नुकसान

Parmod Kumar

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केंद्र सरकार ने तब न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दों पर आगे विचार करने के लिए पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव की अध्यक्षता में समिति गठित की थी लेकिन एमएसपी पर कानून नहीं बन पाया है। अगर यह कानून बनता है तो इसका सीधा असर किसानों की फसल खरीदने वालों पर होगा वह तय भाव के नीचे से फसल खरीद नहीं पाएंगे। हालांकि धान व गेहूं की खरीद सरकारी एजेंसियों द्वारा की जाती है लेकिन बाकी फसलों की खरीद निजी कंपनियां के अलावा कुछ हिस्सा सरकार करती है।

दिसंबर 2023 में राज्यसभा में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने कहा था कि सरकार ने जुलाई 2022 में एमएसपी समिति का गठन किया है जिसमें किसानों के प्रतिनिधि, केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, कृषि अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक आदि शामिल हैं।

भारत सरकार कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा करती है। सीएसीपी एमएसपी का सुझाव देते समय विभिन्न तथ्यों को ध्यान में रखता है जिसमें समग्र मांग-आपूर्ति की स्थिति, उत्पादन की लागत, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कीमतें, अंतर-फसल मूल्य समानता, कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के बीच व्यापार की शर्तें और अर्थव्यवस्था पर संभावित प्रभाव शामिल हैं।
जब कोई खरीदार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का भुगतान करने को तैयार नहीं होगा तो सरकार के पास बड़ी मात्रा में उपज का भंडारण करने के लिए आवश्यक भौतिक संसाधन नहीं हो सकते हैं। सरकार को खरीद और उन खरीदों को करने में तेजी की एक और चिंता का भी सामना करना पड़ सकता है। एमएसपी लगाने से भारत के निर्यात पर असर पड़ सकता है, क्योंकि निजी व्यापारियों को एमएसपी पर खरीदारी करने के लिए मजबूर करना मुश्किल हो सकता है।
वरिष्ठ वकील आरके भल्ला का कहना है कि साल तुअर और उड़द सहित 5 खरीफ फसलों का मंडी भाव एमएसपी से भी ज्यादा रहा है। देश की 11 प्रमुख खरीफ फसलों में से 5 का मंडी भाव उनके एमएसपी से भी अधिक है। सोयाबीन और मूंगफली का मंडी भाव बेंचमार्क दरों के बराबर है। वहीं, मूंग, मक्का, रागी और बाजरा ऐसी खरीफ फसल हैं, जो बेंचमार्क दरों से नीचे का कारोबार कर रही हैं।
पिछले साल ज्वार, तुअर, कपास, उड़द और धान (गैर-बासमती) की अखिल भारतीय औसत कीमतें उनके एमएसपी से 5 से 38 प्रतिशत तक अधिक थीं। कर्नाटक में मक्के की कीमतें एमएसपी से अधिक थीं लेकिन पूरे भारत में वे कम दिख रही थीं जो अन्य राज्यों में कम गुणवत्ता के कारण हो सकता है। दरअसल कीमतों का यह उतार-चढ़ाव ही एमएसपी पर गारंटी के लिए सबसे बड़े बाधक के रूप में सामने आ रहा है। दूसरा, पंजाब की मुख्य फसल धान व गेहूं है, दोनों पर एमएसपी पहले से है और इसकी खरीद सरकार कर रही है। वहीं एमएसपी पर कानून बनने से बाकी फसलों को खरीदना भी सरकार की मजबूरी होगी और उनको स्टोर करना व आगे बेचना सरकार की जिम्मेदारी बन जाएगी। इसलिए एमएसपी पर कानून आसान नहीं है।
एमएसपी हमेशा फसल की एक ”फेयर एवरेज क्वालिटी” के लिए दिया जाता है। यानी कि जब फसल की अच्छी क्वालिटी होगी तभी उसकी एमएसपी पर खरीद की जाएगी अन्यथा नहीं। ऐसे में अगर सरकार ने एमएसपी पर गारंटी दे दी तो उस फसल की क्वालिटी अच्छी है या नहीं ये कैसे तय किया जाएगा और अगर फसल तय मानदंडों पर खरी नहीं उतरती है तो उसका क्या होगा। दूसरा अन्य फसलों को एमएसपी में शामिल करने से पहले सरकार उसका बजट भी तय करना होगा।